वैश्विक गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार कौन ?

Afeias
15 Jan 2021
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Date:15-01-21

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विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत भी ऐसा देश है, जिसे 2030 तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करना है। वैश्विक औसत के अनुसार इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन एक तिहाई है। दरअसल, इस जलवायु समझौते में कुल उत्सर्जन, आकार और जनसंख्या को पैमाना बनाया गया है, जिससे भारत को चौथा गैस उत्सर्जक देश मान लिया गया। जबकि संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वैश्विक जनसंख्या में 1% धनी वर्ग, नीचे के 50% द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन के दोगुने उत्सर्जन के लिए दोषी है। स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि उत्सर्जन को रोकने का अधिक दायित्व, अधिक प्रति व्यक्ति उत्सर्जन, सकल घरेलू उत्पाद और कुशल क्षेम पर आधारित किया जाना चाहिए।

इसके कई कारण है –

  • 1950 तक अमेरिका का कुल उत्सर्जन 40% तक पहुँच चुका था। उत्तरी अमेरिका और यूरोप में विश्व की एक-चैथाई से कम जनसंख्या निवास करती है। लेकिन ये विश्व में उपलब्ध आधी भौतिक सामग्री का उपभोग करते रहे हैं। हालांकि 2010 में यह प्रतिशत कम हो गया था, लेकिन पारिस्थितिकी को हानि तो पहले ही पहुँचाई जा चुकी थी।
  • अमेरिका की तुलना में चार गुना अधिक आबादी वाला देश चीन मात्र 12% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। वहीं भारत 3% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
  • पश्चिमी देशों ने विश्व युद्ध द्वितीय के बाद जो पुननिर्माण किया, उससे 1970 तक तापमान में तीव्र वृद्धि हो चुकी थी। उत्सर्जन भी बढ़ चुका था।
  • उत्सर्जन के संदर्भ में भारत को अपनी अनूठी परिस्थितियों को उजागर करना चाहिए। उदाहरण के लिए मांस उद्योग, विशेष रूप से गोमांस, वैश्विक उत्सर्जन में एक-तिहाई के लिए जिम्मेदार है। अमेरिका के 100 किलो और यूरोपीय संघ के 65 किलो की तुलना में भारतीय मात्र 4 किलो ही उपभोग करते हैं।
  • औसत अमेरिकी परिवार अपने भोजन का लगभग एक-तिहाई बर्बाद करते हैं।
  • विश्व के एक-चैथाई उत्सर्जन के लिए परिवहन जिम्मेदार है। अमेरिका में इसके द्वारा होने वाले उत्सर्जन ने विद्युत से उत्सर्जन को पीछे छोड़ दिया है। फिर भी इसे पश्चिमी सभ्यता का प्रतीक माना गया है, और वैश्विक एजेंडे में शामिल नहीं किया गया है।
  • ऊर्जा के साधन के रूप में एशिया में कोयले का चलन अधिक है, क्योंकि यहाँ कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। फिर भी भारत जैसे एशियाई देशों पर इसका उपयोग कम करके इलैक्ट्रिक वाहन के संचालन को बढ़ाने के लिए दबाव डाला जा रहा है।

इन कारणों के साथ ही भारत के पास वैश्विक औसत से नीचे प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार देशों के लिए वैकल्पिक 2050 के लक्ष्य को आगे बढ़ाने की विश्वसनीयता और वैधता है।

उत्सर्जन समस्या का कारण नहीं है, वरन् एक लक्षण है। भारत को चाहिए कि अपनी सभ्यता के आधार पर इस संक्रमण काल में धारणीयता के लिए वह दीर्घकालिक वैकल्पिक मूल्यों पर आधारित विचार प्रस्तुत करे, और समाधान निकालने का प्रयत्न करे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित मुकुल सांवल के लेख पर आधारित। 30 दिसम्बर, 2020

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