भारत की दीर्घकालिक निम्न उत्सर्जन विकास रणनीति या एलटी-एलईडीएस

Afeias
06 Dec 2022
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हाल ही में कोप-27 में भारत की दीर्घकालिक निम्न-उत्सर्जन विकास रणनीति जारी की गई है। इसी परिप्रेक्ष्य में यह भारत की अर्थव्यवस्था में बदलाव की रणनीति की भी एक झलक दिखाता है। भारत जैसे निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए कार्बन, उच्च-उत्सर्जन विकल्पों से हटना मुश्किल कदम हो सकता है। इसी मद्देनजर यह रणनीति तैयार की गई है। कुछ बिंदु-

  • वैश्विक कार्बन बजट के अनुसार 2021 में भारत का कार्बन उत्सर्जन 7% दर्ज किया गया था। चीन में यह 31%, अमेरिका में 14% और यूरोपियन यूनियन में 8% रहा था। 2022 के अनुमान बताते हैं कि यूरोपीय यूनियन के उत्सर्जन में 0.8% की कमी होगी। अमेरिका और चीन में क्रमशः 1.5% और 0.9% की कमी होगी। लेकिन भारत के उत्सर्जन में 6% की वृद्धि होगी। यह वृद्धि कोयले के उपयोग के कारण होगी।
  • भारत की रणनीति में उत्सर्जन की कमी या इसकी समय सीमा तय करने संबंधी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है। परंतु यह ग्रीन हाइड्रोजन के प्रसार, परमाणु क्षमता में विस्तार, नवीकरणीय ऊर्जा और बायोईंधन में तेजी लाने जैसे विकल्पों के बारे में बात करती है।
  • साथ ही यह रणनीति उत्सर्जन को बढ़ाने वाले परिवहन उद्योग, शहरीकरण आदि कारकों को संज्ञान में लेते हुए इनमें जीरो-उत्सर्जन के लक्ष्य को लेकर चलती है। इस संदर्भ में यह वानिकी, कार्बन हटाने के विकल्पों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अपनाने पर केंद्रित है।

भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से एक है। अतः कार्बन के उत्सर्जन को कम करना इसके हित में है। इस मामले में हमें वित्तीय सहयोग की जरूरत होगी। 2019-20 में हमारा ग्रीन फाइनेंस 44 अरब डॉलर था, जबकि हमें 170 अरब डॉलर सालाना चाहिए थे। इस बजट में 80% स्रोत हमारे अपने थे। अपने वित्त प्रवाह को बढ़ाने के लिए भारत को प्रयास करना होगा। तभी हम उत्सर्जन में कटौती के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकते हैं।

‘द इकानॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 15 नवबंर, 2022

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