महिला सशक्तिकरण को लीलती महामारी
Date:15-04-21 To Download Click Here.
कोविड-19 महामारी ने भारत में लैंगिक असमानता की कहानी को सबसे कठिन चुनौतियों में से एक बना दिया है। महिलाओं को कार्यबल से बाहर करने की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुँचती जा रही है। महिलाओं की श्रम भागीदारी की दर भारत में शुरू से ही कम रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार, महामारी का आर्थिक झटका, महिलाओं को असमान रूप से लगा है।
कुछ तथ्य
- आंकड़ों के अनुसार 2018 के मध्य में महिलाओं की श्रम भागीदारी का 11% , 2020 की शुरूआत में ही गिरकर 9% पर आ गया था।
- नवम्बर 2020 तक कुल रोजगार की कमी में से 49% महिलाओं के रोजगार प्रभावित हुए हैं।
- सेवा क्षेत्र और कपड़ा उद्योग की तबाही से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में महिला कार्यबल था। इससे शहरी महिलाओं की आय में कमी आई है।
- भारतीय समाज ने महिला श्रम और घर में महिला के स्थान को पुरूष की कमाई और धन से हमेशा नीचे रखा है। उनके काम छूटने को उनकी शहरों से वापस गांवों की ओर की यात्रा के रूप में भी देखा जा रहा है। स्कूलों के लंबे समय तक बंद रहने , और घर में देखभाल के बोझ के बढ़ने से महिलाओं का काम पर लौटना कठिन होता जा रहा है। आर्थिक संकट के चलते अब बच्चों के लिए पालनाघर या क्रेच का भुगतान करने की हिम्मत नहीं रही है। इससे महिलाओं की स्थिति बदतर होती जा रही है।
- लैंगिक असमानता के चलते महिलाओं के स्वास्थ और पोषण, शिक्षा और स्वायत्तता पर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका बनी हुई है।
दशकों से, उच्च शिक्षा में महिलाओं की बढ़ती संख्या, आकांक्षाओं की उड़ान का प्रतिनिधित्व करती रही है। महामारी का दौर, इस आकांक्षा के पर कतरने पर उतारू हो रहा है। भारत को चाहिए कि वह अपने लैंगिक लाभांश को बर्बाद होने से रोके। महिलाओं को घर से कार्यस्थल तक ले जाने के मार्ग तैयार करे। सरकार और नीति निर्माताओं को इस ओर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। निकट भविष्य में इसका लाभ महिला श्रमिकों और महिलाओं को रोजगार देने वाले उद्योगों को होगा। लेकिन दीर्घावधि में यह सामाजिक परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया होगी, जो आधी आबादी की क्षमता को उत्प्रेरित करेगी है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 मार्च, 2021