राजनीति में महिला आरक्षण

Afeias
27 Mar 2018
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Date:27-03-18

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लगभग 25 वर्षों से भारत की प्रत्येक सरकार ने संसद एवं विधानसभाओं में महिला आरक्षण लागू करने का प्रयत्न किया है। भारत में आरक्षण का मुद्दा राजनीति का विवादास्पद हिस्सा रहा है। चूँकि आरक्षण का लाभ लेने वाले अनेक समूहों में महिलाओं का स्थान सचमुच बहुत पिछड़ा हुआ है, इसलिए ऐसा लगता है कि महिलाओं को राजनीति में आरक्षण देना भारत के लिए अनेक प्रकार से हितकारी सिद्ध होगा।

  • कुछ तथ्य
  • भारत की 74% साक्षरता दर की तुलना में महिला साक्षरता दर 64% है।
  • महिलाओं की आर्थिक भागीदारी 42% है, जबकि विकसित देशों में यह 100% पहुँच रही है।
  • कामकाज में भारतीय महिलाओं की भागीदारी मात्र 28% है, जबकि हमारे पड़ोसी बांग्लादेश में भी यह 45% है।
  • लोकसभा के लिए चुनी गई महिलओं का प्रतिशत 12 है, जबकि वैश्विक औसत 23% है।

हाँलाकि, महिला राजनीतिज्ञों की संख्या से किसी देश की लैंगिक समानता का परीक्षण नहीं किया जा सकता। अमेरिका के निम्न सदन में मात्र 19%महिलाएं हैं। यू.के. में 30% और स्वीडन में 45% महिलाएं हैं। इन तीनों में स्वीडन ही ऐसा देश है, जहाँ महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के लिए कानून है। भारत ने भी स्वीडन जैसे देशों से प्रेरित होकर पार्टी टिकट आवंटन में महिलाओं के लिए 33% का कोटा तय किया था।

यह सच है कि केवल राजनीति में आरक्षण के दम पर भारत में लैंगिक समानता स्थापित नहीं की जा सकती। इसके लिए महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता आवश्यक है, और इसके लिए उनका कामकाजी होना जरूरी है।दूसरे, सरकार की बेटी बचाओ योजना या व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं का पायलट, ऑटो रिक्शा या बस ड्रायवर, खेल-प्रतिभा या उत्कृष्ट व्यवसायी बन जाने से समाज के दृष्टिकोण में एकाएक परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। इसमें लंबा समय लगता है।

बावजूद इसके, स्थानीय स्तर की राजनीति में महिलाओं को दिए गए आरक्षण का समाज में परिवर्तन लाने में बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कई महिला प्रधान या सरपंच बनकर ऐसा कर रही हैं।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित वैजयंतजय पंडा के लेख पर आधारित।

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