कुपोषण का चिंताजनक स्तर

Afeias
19 Jul 2022
A+ A-

To Download Click Here.

अच्छे पोषण से वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को सशक्त बनाया जा सकता है। भारत की सबसे बड़ी संपत्ति उसके नागरिक हैं। लेकिन आजादी के 75 वर्ष बाद भी इनमें से अधिकांश को अपनी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक आहार नहीं मिलता है।

पोषण से जुड़े कुछ तथ्य –

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट बताती है कि चौथे सर्वेक्षण में स्टंटिंग या बौनेपन में कुछ कमी आई थी, जो वापस बढ़ गई है। यह अध्ययन 13 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में किया गया था।
  • कुपोषण के चलते वेस्टिंग या कम वजन का सबसे अधिक खतरा बढ़ता दिखाई दे रहा है।
  • भारत में एनीमिया के सबसे अधिक मामले हैं। 57% से अधिक महिलाएं और 67% से अधिक बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं।

मानव स्वास्थ्य और विकास के संदर्भ में एनीमिया व्यक्ति की कार्य क्षमता को कम करता है। इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था और समग्र राष्ट्रीय विकास पर पड़ता है। इसके चलते विकासशील देश, सकल घरेलू उत्पाद में 4% तक की कमी सहते हैं। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में प्रतिवर्ष इससे 1.18% तक की हानि होती है।

  • गर्भवती महिलाओं में पोषण की कमी का सीधा प्रभाव बच्चे के स्वास्थ्य और भविष्य की पीढ़ी पर पड़ता है।

समाधान –

  • स्वास्थ्य और पोषण की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • सरकार ने परिणामों में सुधार हेतु कई कार्यक्रमों के समेकन पर ध्यान दिया है। इसके साथ ही वित्तीय प्रतिबद्धता को बढ़ाया जाना चाहिए। आंगनबाड़ी और पोषण योजनाओं में बजट को मामूली रूप से बढ़ाया गया है।
  • सांसदों को चाहिए कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जरूरतों के अनुसार कदम बढ़ाएं। स्थानीय स्तर पर चुनौतियों का समाधान करने के लिए मुद्दों, प्रभाव और समाधानों पर जागरूकता बढ़ाएं।
  • पोषण हेतु जरूरतमंद समूहों के साथ सीधे जुड़ाव रखा जाना चाहिए। पोषण संबंधी सामग्री के वितरण के अंतिम चरण के सफलतापूर्वक संपन्न होने तक निगरानी की जानी चाहिए। इससे जमीनी स्तर पर कार्यक्रमों की उचित योजना और कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।
  • विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि माताओं के शिक्षित होने का सीधा प्रभाव बच्चों के पोषण के स्तर पर पड़ता है। अतः स्त्री-शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए।

कुपोषण और उससे जुड़े एनीमिया के बढ़ते बोझ के प्रति देश की प्रतिक्रिया व्यावहारिक और नवोन्मेषी होनी चाहिए। इससे मुक्ति के लिए शिक्षा और जागरूकता की बहुत जरूरत है, क्योंकि इस चुनौती का सामना तभी किया जा सकता है, जब देश का हर नागरिक परिवर्तन का एजेंट बनकर काम करे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित गौरव गोगोई के लेख पर आधारित 15 जून, 2022