कृषि से जुड़े कुछ तथ्य
Date:13-01-21 To Download Click Here.
भारत में लगभग 42% कार्यबल कृषि में संलग्न है। राष्ट्रीय आय में इसका योगदान मात्र 16% है। यदि इससे जुड़े तथ्यों पर एक नजर डालें, तो इसकी वास्तविकता और आय बढ़ाने के उपायों पर विचार किया जा सकता है।
- सेवा क्षेत्र में संलग्न एक भारतीय कृषि में संलग्न किसी व्यक्ति से लगभग 4 गुना अधिक आय अर्जित करता है।
- 1960 के दशक में हुई ‘हरित क्रांति’ के चलते खाद और सिंचाई पर मिली सब्सिडी ने भारत को चावल, गेहूँ, फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र बना दिया है। अमेरिका की तुलना में यह डेढ़ गुना अधिक गेहूँ का उत्पादन करता है।
- इतना अधिक उत्पादन होने के बावजूद किसानों को अपनी उपज के बाजार भाव की तुलना में 40-60% तक ही मिल पाता है। बाकी का हिस्सा मध्यस्थों के पास चला जाता है।
- भारत के किसानों को आधार आधारित डायरेक्ट डेबिट से लगभग 75000 करोड रुपये की सहायता दी जाती है। जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य से केवल 6-11% उपज पर ही मदद मिलती है।
- भारत के सामाजिक सुरक्षा नेट को 3.8% प्रत्यक्ष करदाताओं की मदद से चलाया जाता है। जबकि यूरोपीय देशों में यह 45% से अधिक के प्रत्यक्ष कर पर आधारित है। वहाँ के केवल एक छोटे वर्ग को ही सामाजिक सुरक्षा सहायता की जरूरत पड़ती है।
भारत में किए जाने वाले कृषि और श्रम सुधारों के माध्यम से सरकार कर दाताओं की संख्या बढ़ाना चाहती है, जिससे सामाजिक सुरक्षा पर निर्भरता को कम किया जा सके।
- भारत में फल-सब्जियों के प्रसंस्करण में होने वाली देरी से 40% उत्पादन खराब हो जाता है, जबकि चीन में केवल 22% ही व्यर्थ जाता है।
नए अनुबंध कृषि कानून से कृषि प्रसंस्करण और लॉजिस्टिक सुविधा की प्राप्ति से एक बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था को प्राप्त किया जा सकेगा।
- भारत के 80% खेत 2 हेक्टेयर से कम के हैं। इसके समाधान में कृषक उत्पादक कंपनियां बनाई जा सकती हैं।
महाराष्ट्र में इस प्रकार की कंपनियों के निर्माण से 10 हजार किसानों को जोड़ा गया है। यह अपने कोल्ड स्टोरेज और यूरोप के बाजारों तक पहुँच बना रही है।
- किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 के माध्यम से 6900 मंडियों में काम करने वाले बिचौलियों को हटाया जा सकेगा।
- इसके अलावा भी किसान एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) में अपना उत्पाद बेच सकेंगे। साथ ही निजी स्तर पर व्यापारी अपनी मंडियां स्थापित करके एपीएमसी से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। कर्नाटक में इस प्रकार का एकीकृत बाजार सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है।
- भारत के आर्थिक विकास में रोजगार के अवसर बढ़ने की दर बांग्लादेश से भी कम है।
भारत में श्रम का बाहुल्य है। कृषि और श्रम सुधारों के माध्यम से भारत श्रम आधारित कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ा सकता है। इस मामले में महाराष्ट्र बहुत आगे है। कृषि और श्रम कानूनों में सुधार के माध्यम से उसने सबसे अधिक औपचारिक रोजगार का सृजन किया है। अभी पूरे देश में औपचारिक रोजगार केवल 19% पर है, जिसे कृषि एवं श्रम सुधार कानून के जरिए बढ़ाया जा सकता है।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित प्रवीण सिंह परदेशी के लेख पर आधारित।