गणतंत्र की सुरक्षा के लिए

Afeias
05 Feb 2021
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Date:05-02-21

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हाल ही में हमने गणतंत्र दिवस मनाया है। इस वर्ष यह उत्सव कोविड-19 महामारी के साए और किसानों के आंदोलन के बीच मनाया गया है। एक बार फिर से वह समय है, जब हम अपने राष्ट्र के स्वास्थ्य पर चर्चा करें और नजर डालें कि क्या हमारे देश में सब कुछ ठीक चल रहा है ?

कुछ समय पहले, महात्मा गांधी पर एक पुस्तक का अनावरण करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि, “अगर आप हिंदू हैं, तो आप स्वतः ही राष्ट्रभक्त होंगे। आप चाहे बेसुध हिंदू हों, चाहे आपको प्रबोधन की आवश्यकता हो, लेकिन आप राष्ट्रद्रोही नहीं हो सकते।” इस वक्तव्य के पीछे की विभाजनकारी मानसिकता के लिए यह अपने आप में प्रमाण है। आर एस एस और बीजेपी के लिए धर्म ही ऐसी धुरी है, राष्ट्र जिसके इर्द-गिर्द घूमता है।

देश के विभाजन के दौरान आर एस एस ने घृणा का जो वातावरण बना दिया था, उसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जान ले ली। बहुत से आर एस एस-बीजेपी समर्थकों के लिए गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे आज भी एक सच्चा राष्ट्रभक्त है। भागवत के कथन के अनुसार गोडसे को राष्ट्रभक्ति की परीक्षा में पास किया जा सकता है, परंतु बाबा साहेब आम्बेडकर को नहीं, क्योंकि उन्होंने हिंदू धर्म के भेदभावपूर्ण स्वरूप को ठुकरा कर बौद्ध धर्म अपना लिया था।

आर एस एस प्रमुख का यह बयान, हमारे स्वतंत्रता आंदोलन और गणतंत्र के विकास में सहयोगी बने अन्य धर्मों, विश्वासों और नास्तिकों के योगदान को धूमिल करने का विचार रखता हुआ लगता है। उनके अनुसार तो मौलाना आजाद को भी देशभक्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे गैर हिंदू थे। दादा भाई नौरोजी और होमी जहांगीर भाभा भी इस परीक्षा में पास नहीं होंगे। नास्तिक विचारधारा के भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी देशभक्त को भी शायद उनके लोगों के सामने जवाब देना पड़ता , जो स्वयं स्वतंत्रता आंदोलन से दूर ही रहे।

हमारा स्वतंत्रता आंदोलन अनेक विचारधाराओं और कार्यों की शाखाओं का संगम रहा है। इनमें साम्यवादियों ने न केवल विदेशी शासन से स्वतंत्रता की बात कही, बल्कि वे सभी प्रकार के शोषण के विरूद्ध थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधीजी ने साम्राज्यवादी शासन के विरूद्ध स्वतंत्रता आंदोलन की कमान संभाली। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए भी आवाज उठाई। 1920 में लंदन से लौटने के बाद आम्बेडकर ने जाति प्रथा को खत्म करने की मांग की।

साम्यवादियों, गांधी और आम्बेडकर की विचार धाराओं में अंतर था, परंतु उन्होंने लोगो को जोड़ने और ब्रिटिश शासन को खत्म करने के लिए एक साथ मिलकर काम किया था। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही संविधान सभा का गठन किया गया। इन तीनों विचारधाराओं के लोगों ने समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के आदर्शों को संविधान में शामिल करने के लिए एकरूपता दिखाई।

उस समय हिंदू दक्षिणपंथी; जिन्हें आर एस एस के नाम से जाना जाता है और वी.डी. सावरकर के अधीन चलने वाली हिंदू महासभा राष्ट्रीय आंदोलन को नुकसान पहुँचाने का काम कर रहे थे। जब संपूर्ण देश ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिए एकजुट हो रहा था, तब आर एस एस और महासभा , धर्म के नाम पर देश को विभाजित करने का काम कर रहे थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता आंदोलन में कभी भाग न लेने वाला आर एस एस और उसकी सहयोगी भाजपा आज देशभक्ति के प्रमाणपत्र बांटते घूम रहे हैं।

बहुत पहले आम्बेडकर ने चेतावनी दी थी कि, “संविधान को विकृत करने के लिए उसके रूप को बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। केवल प्रशासन के रूप को बदलकर और इसे असंगत बनाकर संविधान की भावना को आहत करना पूरी तरह से संभव है।”

साम्यवादियों, गांधीवादियों और आम्बेडकर समर्थकों को चाहिए कि वे गणतंत्र और संविधान की रक्षा की चुनौती को स्वीकार करें।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित डी राजा के लेख पर आधारित। 20 जनवरी 2021