क्या हमारा देश वाकई में एक गणतंत्र है?

Afeias
13 Jun 2017
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Date:13-06-17

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  • हमारे संविधान में भारत को प्रजातंत्र और गणतंत्र दोनों कहा गया है। लेकिन यदि आज के संदर्भ में देखें, तो यह प्रश्न बार-बार उठता है कि ऐसा कहा जाना कितना सही है ?‘रिपब्लिक‘ एक रोमन शब्द है। रिपब्लिकन एक ऐसा राज्य है, जहाँ शक्ति नागरिकों के हाथ में रहती है। जबकि “प्रजातंत्र” एक यूनानी शब्द है, जिसमें नेताओं का चुनाव संभ्रांत वर्ग के बीच में से न होकर आम जनता के बीच में से होता है।
  • आज हम प्रजातंत्र हैं, क्योंकि हमारे नेताओं का चुनाव मतदाताओं द्वारा ही हो रहा है। लेकिन क्या हम गणतंत्र हैं ? क्या आज भारत की सही शक्ति जनता के हाथ में है ? ऐसा लगता है कि आज सरकार और उसके विभिन्न अंगों के हितों को जनता के हितों से ऊपर रखा जा रहा है। अगर हम इसकी पृष्ठभूमि में जाएं, तो देखते हैं कि नेहरू को उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त हुआ एक ऐसा देश मिला था, जिसकी सीमाएं निश्चित नहीं हो पाई थीं। अतः उन्होंने जनता के साथ अपने संबंधों को कराधान और कानून-व्यवस्था पर केंद्रित रखा। आज भी वैसा ही हो रहा है।
  • जब भी राज्य को नागरिकों की अधिकारों की मांग से खतरा लगता है, वैसे ही वह उसे दबाने में पीछे नहीं हटता।सरकार द्वारा नागरिकों की आवाज़ को दबाने का प्रयास रोजमर्रा की घटना हो गई है। यह अधिकतर आदिवासी पूर्वोत्तर और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में होता है। सरकार का ऐसा प्रयास कोई राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है, क्योंकि मरने वाले लोग हमारे जैसे नहीं हैं। ये वे लोग हैं, जो राष्ट्रीय विकास के नाम पर होने वाली इनकी भूमि के अधिग्रहण का विरोध करते हैं, और चूंकि ये लोग राष्ट्रीय विकास के कार्यों में बाधा बनते हैं, इसलिए उनके व्यवहार को राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया जाता है।
  • आज हमने भारतीय नागरिकों की बहुत सी ऐसी श्रेणियां बना दी हैं, जिन्हें तिरस्कृत समझा जाता है। आतंकवादी, माओवादी, अलगाववादी, जिहादी ऐसी ही कुछ श्रेणियां हैं। ऐसा करने से हमारी सेना को उन्हें मारना आसान हो गया है। जैसा कि हजारीबाग और न जाने कहाँ-कहाँ किया गया है। इन घटनाओं से ऐसा भी लगने लगा है कि हमारे मन में निर्धनों के लिए कोई सम्मान नहीं है।ऐसे समय में सेना के हितों को नागरिकों के हितों से ऊपर रखने वाली मीडिया इन घटनाओं को गणतंत्र की कसौटी पर कसकर देख सकती है।
  • सेना के हित पाकिस्तान जैसे मार्शल लॉ वाले देश में सर्वोपरि हो सकते हैं, लेकिन भारत जैसे संवैधानिक गणतंत्र में नहीं।ऐसा समय कब आएगा, जब हम पूर्ण रूप से अपने को गणतंत्र कह सकेगें ? यह तभी संभव हो पाएगा, जब सरकार बिना किसी आपत्ति के हमारे नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान कर सकेगी, जब जनता के विरोध का अर्थपूर्ण समाधान निकालकर उसे सही दिशा दी जाएगी। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक भारत को प्रजातंत्र तो कहा जा सकता है, लेकिन सही अर्थों में गणतंत्र नहीं कहा जा सकता।

टाइम्स  ऑफ  इंडिया में आकार पटेल के लेख पर आधारित। 

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