आपराधिक अपीलों का गड़बड़ाया तंत्र
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देश के आपराधिक मामलों में अत्यधिक देरी और बैकलॉग, एक बड़ी समस्या बनी हुई है। देश के उच्च न्यायालयों में लगभग 2.5 लाख से अधिक मामले 10 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित पड़े हुए हैं।
आपराधिक अपीलों के सही प्रबंधन और समय पर निपटान के लिए चार मुख्य आधार हैं। जज, वकील, आरोपी व्यक्ति और रजिस्ट्री कर्मचारी।
- आपराधिक अपीलों के प्रभावी ढंग से निपटान के लिए न्यायाधीशों का पूर्व अनुभव बहुत काम आता है। इसलिए कॉलेजियम में पदोन्नति के लिए इस विशेषज्ञता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
वर्तमान में ऐसी कोई विधि नहीं है, क्योंकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करने के लिए कोई वैज्ञानिक पद्धति नहीं है।
- वकील या अधिवक्ताओं की भूमिका, दोषसिद्धि और दोषमुक्ति, दोनों के ही विरूद्ध आपराधिक अपील दायर करने में महत्वपूर्ण हो जाती है। बरी होने में, राज्य द्वारा अपील दायर की जाती है। उच्चतम न्यायालय ने राज्यों को इस शक्ति का संयम से प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है, परंतु इनमें कोई कमी नहीं आई है।
फालतू अपीलों पर दंडात्मक कार्यवाही किए जाने से इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जा सकता है, परंतु कानूनी बिरादरी में एक प्रकार का अनकहा समझौता है, जिसके चलते न्यायाधीश ऐसा कदम नहीं उठाते हैं। जब तक न्यायाधीश गलत अधिवक्ताओं को अनुशासित नहीं कर सकते, तब तक आपराधिक अपीलें लंबित रहेंगी।
- अभियुक्त के लिए, अदालत के समक्ष अपने मामले को प्रभावी ढंग से रखने की क्षमता ही उसकी कानूनी सहायता की गुणवत्ता का निर्धारण करती है। अधिकांश मामलों में आरोपी व्यक्ति अपने वकील से पूरी तरह से अनजान होते हैं। प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व, संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार है। इस हेतु वकीलों और अभियुक्तों के बीच परस्पर बातचीत के साथ समन्वय कराने की जिम्मेदारी, जेल अधिकारियों की है।
- आपराधिक अपीलों के निपटान में देरी के प्रमुख कारणों में से एक रजिस्ट्री स्टाफ के प्रशिक्षण की कमी है।
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- निचली अदालत के रिकॉर्ड समय पर उपलब्ध नहीं होते।
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- अभिलेखों का डिजिटलीकरण नहीं हुआ है।
उच्चतम न्यायालय ने बार-बार माना है कि त्वरित न्याय का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त एक महत्वपूर्ण अधिकार है। फिर भी अनेक मामलों में होने वाले न्याय की देरी से बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन होता रहता है। एकीकृत राष्ट्रीय त्वरित अपील और न्याय निर्णयन फ्रेमवर्क या आईएनएसएए एफ या इंसाफ के माध्यम से इस तंत्र में कुछ सुधार होने की उम्मीद की जा सकती है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित दीपिका किन्हल के लेख पर आधारित। 18 फरवरी, 2022