
आपराधिक मानहानि से दबती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
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अक्सर देखा जाता है कि मानहानि को आपराधिक मान लेने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हाल ही में तय किए गए दो मानहानि के मामलों में ऐसा ही पाया गया है। बहुत से मामलों में कानून की अस्पष्ट व्याख्या से भी मुक्त संभाषण पर खतरा देखा गया है। अतः इस कानून की समीक्षा की जानी चाहिए। समीक्षा दो तरीके से की जा सकती है –
- मानहानि को पूरी तरह से हटा दिया जाए। इसे हटाने से किसी की ‘प्रतिष्ठा’ पर आई आंच पर मामला फिर भी बनाया जा सकेगा। यह सुरक्षित रहेगी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 351 आपराधिक धमकी से संबंधित है – किसी के शरीर, प्रतिष्ठा या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना। इसके अलावा, धारा 352 ‘शांति भंग करने के लिए किसी का अपमान’ करने के बारे में है। दोनों ही धाराओं में प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा करने के लिए मुक्त भाषण पर उचित प्रतिबंध है।
- दूसरे मानहानि को अपराधमुक्त कर दिया जाए। कानून को ऐसे रूप में रखा जाए, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के अधिकार, दोनों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक संवेदनशीलता को बनाए रखे।
कुल मिलाकर, मानहानि और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन होना चाहिए। मानहानि कानून को केवल झूठे बयानों से प्रतिष्ठा पर आने वाली आंच को बचाने के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए। दूसरी ओर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए, भले ही वह आक्रामक या अलोकप्रिय ही क्यों न हो।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 4 अप्रैल, 2025
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