आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) अधिनियम की सार्थकता पर चर्चा

Afeias
11 May 2022
A+ A-

To Download Click Here.

आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक 2022, जो अब अधिनियम बन चुका है, के प्रति अनेक आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। यह अधिनियम पुलिस और जेल अधिकारियों को आपराधिक मामलों में पहचान, जांच और रिकार्ड को संरक्षित करने के उद्देश्य से दोषियों व अन्य लोगों के ‘माप’ लेने के लिए अधिकृत करता है।

यह अधिनियम सन् 1920 के कैदियों की पहचान अधिनियम (आईपीए) को निरस्त करता है। 1920 के कानून का दायरा, दोषियों व अन्य आरोपितों के उंगलियों के निशान व पदचिन्ह छाप तक ही सीमित था। नए अधिनियम में उंगलियों व पद चिन्ह छाप के साथ ही आईरिस व रेटिना स्कैन, जैविक नमूने आदि लेना शामिल है।

आशंका क्या है ?

आरोप है कि अधिनियम, असंवैधानिक है, और इसका दुरूपयोग हो सकता है।

  1. संवैधानिकता की बात –
  • अधिनियम के दायरे को बढ़ाकर, दोषियों व अन्य आरोपितों के अलग-अलग मामलों में जिन जैविक नमूनों आदि को जोड़ा गया है, उनका प्रावधान पहले से ही कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, सन् 1973 की धारा 53 या 53ए में मौजूद है।
  • इसी प्रकार सीआरपीसी की धारा 311ए, किसी जांच या कार्यवाही के उद्देश्य से नमूना हस्ताक्षर या लिखावट का नमूना लेने का अधिकार देती है।
  • विधि आयोग ने अपनी 1969 की 41वीं रिपोर्ट में, संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन किए बिना गिरफ्तार व्यक्ति की भौतिक जांच का प्रावधान दिया था।

इस प्रकार वर्तमान अधिनियम की संवैधानिकता पर संदेह नहीं किया जा सकता।

  1. दुरूपयोग की आशंका नहीं है –
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एक वर्ष तक के कारावास से दंडनीय अधिकांश अपराध गैर-संज्ञेय होते हैं।
  • सीआरपीसी की संशोधित धारा 41(1) ने न केवल सात वर्ष तक के कारावास से दंडनीय संज्ञेय अपराधों में गिरफ्तारी पर प्रतिबंध लगा दिया है, बल्कि ऐसे मामलों में जैविक नमूने देने के लिए अधिनियम में गैर-बाध्यकारी (नॉन-ऑब्लिगेटरी) प्रावधान भी किये गये हैं।

इस प्रकार माप के दायरे का विस्तार करने से किसी व्यक्ति की गोपनीयता को कोई नुकसान होने की आशंका नहीं है।

प्रौघोगिकी से त्रुटियों को कम करने का प्रयत्न –

अधिनियम का उद्देश्य अपराध को रोकने और उसका पता लगाने के लिए प्रवर्तन एजेंसियों को वैज्ञानिक तरीकों से लैस करना है। माप के डेटाबेस में कई विश्लेषणात्मक उपकरण जोड़कर बेहतर परिणाम पाए जा सकते हैं। भविष्य की स्मार्ट पुलिसिंग के लिए यह अधिनियम एक सार्थक पहल है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित आर.के. विज के लेख पर आधारित। 21 अप्रैल, 2022

Subscribe Our Newsletter