तीन तलाक के विरूद्ध कानून की सार्थकता

Afeias
13 Aug 2020
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Date:13-08-20

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स्वतंत्रता पश्चात् भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के विरूद्ध अनेक प्रगतिशील कानून बनाए गए हैं। इनमें 1961 का दहेज विरोधी कानून , 2005 का घरेलू हिंसा कानून , भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 बी के अंतर्गत विवाह के सात वर्षों के भीतर पत्नी पर उत्पीड़न से मृत्यु के मामले में आजीवन कारावास , 2018 में धारा 376 में संशोधन कर 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार करने पर फांसी की सजा , जैसे कई प्रभावशाली कानून शामिल हैं। इसी कड़ी में ठीक एक वर्ष पूर्व 2019 में तीन तलाक कुप्रथा को खत्म करने के विधेयक को कानूनी रूप दिया गया था। इसी के साथ देश की मुस्लिम महिलाओं के लिए संवैधानिक , मौलिक , लोकतांत्रिक और समानता के अधिकारों का मार्ग खुल गया।

कानून की विशेष बातें

  • इस कानून के साथ ही तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत या इसके किसी समान रूप को अवैध घोषित कर दिया गया।
  • ऐसा करने वाले पति को तीन वर्ष कारावास के साथ दण्ड राशि के भुगतान की सजा दी जा सकती है।
  • अपराध की जानकारी पीडि़त महिला या रक्त संबंधी किसी व्यक्ति व्दारा दिए जाने पर ही मान्य होगी।
  • पीडि़त महिला की दलील सुनने के बाद ही जमानत की गुंजाइश होगी।
  • पत्नी व आश्रित बच्चों को उपयुक्त गुजारा भत्ता दिया जा सकेगा।
  • नाबालिग बच्चों की रक्षा का भार महिला पर होगा।

किसी माध्यम से महज तीन बार तलाक कहकर तलाक देने के मामले किसी भी संवेदनशील देश एवं समावेशी सरकार के लिए अस्वीकार्य थे। ज्ञातव्य हो कि दुनिया के कई प्रमुख इस्लामी देशों ने बहुत पहले ही तीन तलाक को गैर कानूनी और गैर इस्लामी घोषित कर खत्म कर दिया है। मिस्र दुनिया का पहला इस्लामी देश रहा , जिसने 1929 में ही तीन तलाक को खत्म कर दिया और इसे गैर कानूनी एवं दण्डनीय अपराध बनाया।

भारत में तीन तलाक के खिलाफ कानून तो 1986 में शाहबानो के फैसले के दौरान भी बन सकता था , पर बहुमत में रही कांग्रेस सरकार ने कुछ कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेककर उच्चतम न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी बनाकर मुस्लिम महिलाओं को संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए समानता के अधिकार से वंचित कर दिया था। यह दुखद है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते मुस्लिम महिलाओं के हितों को दांव पर लगाया जाता रहा।

कानून बनने के बाद से तीन तलाक के मामलों में भारी कमी दर्ज की जा रही है। कुछ मामलों में सम्मानजनक समझौते भी किए गए हैं। महिला सशक्तीकरण की दिशा में यह एक बड़ा कदम माना जा सकता है। साथ ही सरकार व्दारा महिलाओं के लिए बनाई गई अनेक समावेशी विकास योजनाओं का लाभ मुस्लिम महिलाओं को भी भरपूर मिला है। छात्राओं को छात्रवृत्ति , हुनर हाट , गरीब नवाज स्वरोजगार योजना , बिना मेहरम (पुरूष रिश्तेदार) महिलाओं को हज पर जाने की छूट , उज्जवला योजना आदि से मुस्लिम महिलाओं को बड़ा लाभ हुआ है। इस ऐतिहासिक कानून को पारित करके संसद ने अभूतपूर्व काम किया है।

समाचार पत्रों पर आधारित।

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