वन्य-प्राणियों की रक्षा करता विज्ञान

Afeias
14 Aug 2020
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Date:14-08-20

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पृथ्वी से 240 मील की दूरी पर विचरण करने वाला अंतरिक्ष स्टेशन , वन्य जीवन की निगरानी करने , और पशुओं की ट्रैकिंग के विज्ञान में क्रांति लाने के प्रयास से जुड़ने वाला है। 2018 में रूसी अंतरिक्ष यात्रियों ने ऑर्बिट (परिक्रमा) चैक पर एक बड़ा एंटीना और अन्य उपकरण लगाए थे। इन्हीं की मदद से यह नया सिस्टम चलाया जा सकेगा। इसे इंटरनेशनल कॉपरेशन फॉर एनिमल रिसर्च यूजिंग स्पेस ( इकारस) के नाम से जाना जाएगा ,  जो काफी दूर-दूर के क्षेत्रों तक वन्य जीवों को ट्रैक करने में सक्षम होगा।

लाभ –

  • पिछली ट्रैकिंग तकनीकों की तुलना में यह सिस्टम अधिक डेटा रिले करेगा।
  • यह न केवल पशु के स्थान की , बल्कि इनके शरीर विज्ञान और पर्यावरण की पूरी जानकारी देगा।
  • दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर अधिक विस्तृत जानकारी देकर यह वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों की सहायता करेगा।
  • इससे पशुओं को पहनाए जाने वाले ट्रांसमीटर का आकार छोटा हो जाएगा।
  • इससे शोधकर्ताओं को लंबी दूरी पर पलायन करने वाले पक्षियों के झुण्ड को ट्रैक करने की सुविधा मिलेगी।
  • जलवायु परिवर्तन और आवास के नष्ट होने के चलते पलायन करने वाली प्रजातियों के स्थान परिवर्तन की तुरंत जानकारी मिलेगी।
  • इसकी ऑफ-द-शेल्फ तकनीक में जी. पी.एस. और सौर यूनिट शामिल हैं , जिससे छोटे जीवों को ट्रैक किया जा सकता है।
  • शिकारियों का निशाना बनने वाले पशुओं पर कड़ी नजर रखी जा सकती है।
  • यह स्पेस स्टेशन पृथ्वी पर कहीं भी वन्य-जीवों की स्थिति का पता लगा सकेगा।
  • पशुओं के माध्यम से फैलने वाली बीमारी पर नजर रखी जा सकेगी , और समय रहते उसे नियंत्रित किया जा सकेगा।

जलवायु परिवर्तन व अन्य कारणों से जैव विविधता में आई कमी से जीवों की अनेक प्रजातियां या तो विलुप्त हैं , या विलुप्ति के कगार पर हैं। पर्यावरणीय जीवों के बिना हमारा जीवन अधूरा है। इनकी गतिविधियों को ट्रैक करके हम भूकंप और ज्वालामुखी फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व जानकारी भी प्राप्त करने का प्रयत्न कर सकते है। सारस की एक प्रजाति की गतिविधि से टिड्डी दल का पता लगाया जा सकता है। इकारस जैसी तकनीक से वन्यजीवों की सामूहिक रूप से जानकारी प्राप्त करके हम अपनी पालक और पूरक प्रकृति को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। जब हम उसे समझेंगे , तभी उससे प्रेम कर सकेंगे और सही मायने में तभी मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक बन सकेंगे।

समाचार पत्रों पर आधारित।

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