मानव एवं वन्य जीवों का संघर्ष

Afeias
28 Jun 2016
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Date: 28-06-16

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हाल ही में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने तीन राज्यों उत्तराखण्ड,

बिहार एवं हिमाचल प्रदेश को 1972 के वन्यजीवन सुरक्षा अधिनियम के अतंर्गत कुछ वन्य प्रजातियों को अपराधी की श्रेणी में रखकर उन्हें मारने का अधिकार दे दिया है। इन हत्याओं को लेकर कोई अभियोग नहीं लगाया जाएगा।

इसी तरह से महाराष्ट्र और तेलगाना ने भी निर्देश जारी किए हैं। बिहार और महाराष्ट्र में नीलगाय, हिमाचल प्रदेश में बंदर तथा अन्य राज्यों में जंगली सूअरों के नष्ट किए जाने पर कोई अभियोग नहीं लगाया जाएगा। इसका मुख्य कारण इनके द्वारा फसल को बर्बाद करना है। दूसरे इनकी संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है।

कारण

  • वन्य पशुओं की कुछ प्रजातियां जैसे जंगली सूअर, हाथी, बंदर और नीलगाय अक्सर फसलों या संपत्ति को नष्ट कर देते हैं।
  • यद्यपि इससे हुए नुकसान के सही आंकड़े नहीं हैं, परंतु किसानों या संपत्ति मालिकों को इन पशुओं के कारण अनुमानतः 200 से 400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

समाधान

  • वन्यजीवन वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निपटने के लिए कई उपाय बताए हैं। इनमें पहला वन्य पशुओं को मारना ही है। हाँलाकि उन्हें मारना मनुष्य तथा वन्य पशुओं के संघर्ष को रोक नहीं सकता, बल्कि ऐसी घटनाओं में वृद्धि ही करता है।
  • हिमाचल प्रदेश ने 2007 में हजारों बंदरों को मारा, लगभग 96000 बंदरों की नसबंदी करवाई, फिर भी स्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ। मैसूर विश्वविद्यालय और सलीम अली पक्षी विज्ञान संस्थान ने रिपोर्ट दी है कि बंदरों की संख्या में कुछ कमी आई है। फिर भी आठ वन्य क्षेत्र ऐसे हंै, जहाँ इनकी संख्या बहुत बढ़ी है।
  • वन्यजीवन महानिदेशक ने फसल नष्ट करने वाले पशुओं को मारने को उचित ठहराया है। उनके अनुसार पिछले एक वर्ष में वन्य पशुओं ने लगभग 500 लोगों को मारा है। कुछ शोधों से पता चला है कि अधिकतर लोगों की मृत्यु वन्य पशुओं के साथ आकस्मिक भिडंत की वजह के हुई है।
  • वन्य पशुओं के कारण हुई मानवीय मौतों को रोकने के लिए उनके आगमन की या स्थिति की सही जानकारी देने वाले तंत्र के विकास की आवश्यकता है। जैसे कि हाथी अक्सर झंुड में चलते हैं और उनकी गतिविधियों की दिशा की जानकारी वन विभाग को मिलती रहती है। हाथी-बहुल इलाकों में वन विभाग कुछ सड़कों को रात के समय बंद भी कर देता है, तथा वहाँ हाथियों से सावधान रहने संबधी चेतावनी भी लगा दी जाती है।
  • आज वन्य जीवन संरक्षणकर्ता अनेक प्रकार के आधुनिक यंत्रों से लैस होते हैं। उनके पास एस एम एस एलर्ट के लिए मोबाइल फोन, वन्यपशु की स्थिति की जानकारी के लिए स्वचालित (Automated) प्रणाली एवं चेतावनी देने वाले तंत्र होते हैं। इनकी मदद से वन्य पशुओं की गतिविधियों को जानकर मानव-जीवन की, फसल की एवं संपत्ति की रक्षा की जा सकती है।
  • जंगलों के मध्य बसे गांवों में सुरक्षित आवास, बिजली की उपलब्धता, घर में शौचालयों के निर्माण एवं इन क्षेत्रों को अच्छी परिवहन सेवा से जोड़कर मानव-वन्यजीवन संघर्ष को बहुत कम किया जा सकता है।
  • पशुओं के आवास को खनन या मानव बस्तियों के लिए उजाड़ा जा रहा है। पशु किसी भी खेत में तब घुसते हंै, जब वह खेत उनके आवासीय क्षेत्र के आसपास हो, फसल खाने योग्य हो, जल स्त्रोत के पास हो या पशुओं के विचरण क्षेत्र में आते हों। ऐसे खास स्थानों को पहचानकर उनकी बाड़बंदी या बिजलीयुक्त बाड़ लगवाई जा सकती है।
  • पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय फसल बीमा योजना में वन्य पशुओं के कारण हुई फसल- क्षति को भी बीमा में शामिल करने की सिफारिश की है।
  • विनाशकारी पशुओं पर आरोप लगाने की बजाय ऐसे समस्याग्रस्त जगहों की पहचान करके वहाँ के लोगों को समय-समय पर सतर्क किया जाना चाहिए।
  • स्थानीय जनता और वन विभाग कर्मचारियों को पशुओं से बचने के लिए प्रशिक्षित एवं सशक्त बनाने की बहुत जरूरत है।

वन एवं वन्य जीवन हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग हैं। वन्य पशुओं के वध को रोकना हर हाल में जरूरी है। इससे मानव एवं वन्य जीवन; दोनों को ही लाभ होगा।

द हिंदू’ में प्रकाशित टी.आर. शंकर रमन के लेख पर आधारित

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