बौद्धिक संपदा कानून

Afeias
27 Jun 2016
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Date: 27-06-16

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13 मई 2016 को वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के डिपाटमेन्ट आफ इंडस्ट्रीज पॉलिसी एण्ड प्रमोशन (DIPP) ने ‘सृजनात्मक एवं अन्वेषक भारत’ को बढ़ावा देने के लिए एक दस्तावेज जारी किया है।

वास्तव में इस दस्तावेज में कई कमियां हैं।

  • दस्तावेज के आधार पर सभी तरह के ज्ञान को ‘बौद्धिक संपदा’ के अंतर्गत रखा जाना चाहिए। साथ ही बौद्धिक संपदा की महत्ता के प्रसार को बढ़ाने के लिए प्रख्यात व्यक्तियों का सहारा लेना चाहिए।

जबकि सच्चाई यह है कि अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक समुदाय बौद्धिक संपदा अधिकार को अन्वेषण को बढ़ावा देने वाले एक सीमित साधान के रूप में देखते हैं।

  • नीति के अंतर्गत इस बात पर जोर दिया गया है कि कांऊसिल आॅफ साइंटिफिक एण्ड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (CSIR) जैसी सार्वजनिक धन पर चलने वाली संस्थायें बौद्धिक संपदा कानून के जरिए अधिक से अधिक बौद्धिक संपदा बढ़ाए।

परंतु इसमें सार्वजनिक धन का उपयोग करते हुए किस प्रकार बौद्धिक संपदा का व्यावसायकीकरण किया जा सकता है, इसके बारे में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दिए गए हैं।

  • इस दस्तावेज में कुछ कानूनी विसंगतिया भी हैं। इसमें कहा गया है कि भारत अंतरराष्ट्रीय समझौतों में लचीलापन अपना सकता है। साथ ही यह भी कि वह दोहा में हुए ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट आॅफ इंटैलेक्च्यूल प्रॉपट्री राइट्स एग्रीमेन्ट ( TRIPS) और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर अपनी प्रतिबद्धता पर दृढ़ रहेगा।
  • दुर्भाग्यवश दस्तावेज में भारत को ‘गरीब देशों के फार्मासिस्ट’ के रूप में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ बनाने संबंधी कोई चर्चा नहीं की गई है। बल्कि पारंपरिक ज्ञान की संरचना संबंधी चर्चा ज्यादा की गई है। जबकि अभी तक विश्व स्तर पर पारंपरिक ज्ञान को बौद्धिक संपदा में पहचान ही नहीं दी गई है।
  • दस्तावेज में बौद्धिक संपदा के लिए कार्यालयों के उचित प्रबंधन पर जोर दिया गया है। परंतु इसके लिए जब तक पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था नहीं की जाती, तब तक ऐसा कर पाना संभव नहीं होगा।
  • इस दस्तावेज में कहा गया है कि बौद्धिक संपदा से संबंधित विवाद व्यावसायिक न्यायालयों में सुलझाए जाएंगे। पहले भी इस तरह के एक अपीलीय बोर्ड का गठन किया गया था, जो अब उपेक्षित अवस्था में है।

अतः बौद्धिक संपदा के अंतर्गत सृजनात्मकता और अन्वेषण को बढ़ावा देने के लिए अभी उससे जुड़े कानून में स्पष्टता की बहुत अधिक आवश्यकता है।
द इंडियन एक्प्रेसमें प्रकाशित
श्रीविद्या राघवन और के. सुब्रमण्यम के लेख पर आधारित

 

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