राजनीतिक दलों की राजनीति से जुड़े 13 सवाल

Afeias
11 Aug 2020
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Date:11-08-20

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कुछ समय से राजस्थान में हो रहे राजनीतिक असंतुलन के व्दारा उठाए गए राजनीतिक कानूनी और संवैधानिक मुद्दों का निराकरण किए जाने की नितांत आवश्यकता है। इस पूरे घटनाक्रम में कुछ बातें स्पष्ट हैं। एक ही पार्टी के दोनों धड़ों के हर खिलाड़ी की विश्वसनीयता कटघरे में है।

घटनाक्रम की शुरुआत में राज्य के मुख्यंमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी सरकार में मच रहे उथल-पुथल पर काबू पाने के लिए अपने ही उप मुख्यमंत्री के विरूद्ध राजद्रोह का नोटिस जारी कर दिया। दूसरी ओर , सचिन पायलट ने असंतुष्ट विधायकों को साथ लेकर रिजॉर्ट राजनीति का सहारा लिया। ऐसे विधायकों पर दलबदल का आरोप लगाते हुए उन्हें  अयोग्य घोषित करने का मामला अब न्यायालय में है।

न्यायालय ने एक प्रश्नावली तैयार की है , जिसमें विधायकों के असंतोष को संविधान की मूलभूत संरचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा गया है। राजस्थान उच्च न्यायालय के प्रश्नों  का यह वार , दलबदल विरोधी कानून व्दारा परिभाषित किए जाने वाली उस राजनीतिक संस्कृति पर है , जिसने राजनीतिक दलों के भीतर सांस लेने की जगह कम कर दी है। पार्टी हाईकमान को सदस्यों की स्वतंत्रता की लगाम सौंप दी गई है। इसकी पृष्ठभूमि में चुनावी बहुमत की क्रूरता भी है , जो पार्टी के भीतर असंतोष पैदा करती है।

इस संदर्भ में उच्च न्यायालय की 13 प्रश्नों  की सूची , कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर व्यापक विचार-विमर्श के व्दार खोल सकती है। जैसे कि – दलबदल का अर्थ किस प्रकार से लिया जाए , और सीमा से बाहर जाने या पार्टी के अंतर्गत असहमति के बीच एक सीमा रेखा कब और कैसे खींची जाए। क्या “असंतोष या मोहभंग की अभिव्यक्ति और पार्टी नेतृत्व के विरूद्ध जोरदार वक्तव्य” देने को संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2(1)( ए) के दायरे में आने वाले आचरण के रूप में देखा जा सकता है ? यह अनुसूची किसी सांसद या विधायक के ‘स्वेच्छा से राजनीतिक पार्टी की अपनी सदस्यता छोड़ने’ से संबंधित है। राजस्थान के संदर्भ में सभी 19 बागी विधायक अपनी पार्टी में ही रहना चाहते हैं , परन्तु वे नेतृत्व से असंतुष्ट हैं। न्यायालय के सवालों से पार्टी व्हिप और उसकी प्रयोज्य्ता पर भी प्रश्नत उठ खड़े होते हैं।

ज्ञातव्य‍ हो कि 1992 में ,  उच्चतम न्यायालय ने दसवीं अनुसूची की वैधता को बरकरार रखते हुए सभापति के आदेश के बाद अयोग्य  ठहराए जाने वाले मामलों में न्यायालय के हस्तक्षेप पर रोक लगाई थी।

उम्मी्द की जा सकती है कि एक बार फिर सामने आए इस प्रकार के मामले से उभरे 13 प्रश्न  संसदीय लोकतंत्र के निर्माण में पारदर्शिता तथा अधिक खुलेपन का कारण बनेंगे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 27 जुलाई , 2020

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