क्या चुनाव आयोग राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र को नियंत्रित कर सकता है?

Afeias
29 Oct 2024
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भारत का बहुदलीय लोकतंत्र विविधता पर आधारित है। लेकिन अक्सर राजनीतिक दलों को आंतरिक लोकतंत्र के बजाय उनकी उपलब्धियों के आधार पर देखा जाता है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि कई दल आंतरिक लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए नहीं रख पाते हैं। ऐसे में, क्या चुनाव आयोग यह सुनिश्चित कर सकता है कि ये संगठन आंतरिक लोकतंत्र का अभ्यास कर सकें ?

कुछ बिंदु –

  चुनाव आयोग हमारे देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए पंजीकरण प्राधिकरण है। 2002 में उच्चतम न्यायालय के एक निर्णय में कहा गया था कि चुनाव आयोग राजनीतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। इसलिए वह दलों की कार्यप्रणाली पर तो नजर रख सकता है, लेकिन आंतरिक चुनाव न कराए जाने को लेकर दल का पंजीकरण रद्द नहीं कर सकता है।

  भारत एक सुनहरा उदाहरण है, जहाँ सभी राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव परिणामों की स्वीकृति बहुत अधिक है। इस साख के साथ, अगर चुनाव आयोग को आंतरिक चुनावों के आधार पर पंजीकरण रद्द करने में उलझा दें, तो राजनीतिक दल उस पर संदेह करना शुरु कर सकते हैं। अतः चुनाव आयोग को स्वतंत्र निष्पक्ष तरीके से आम और विधानसभाओं चुनावों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए।

अतः राजनीतिक दलों का अनुशासन चुनाव आयोग से आने के बजाय मतदाताओं से आना चाहिए। अगर लोगों को लगता है कि फलां दल लोकतांत्रिक नहीं है, तो वे उसे वोट न दें। राजनीतिक दलों को आंतरिक चुनावों के लिए बाध्य किए जाने का कोई और तरीका नहीं है। चुनाव आयोग दलों के संविधान और उनके उपनियमों के अनुपालन की देखरेख करने मात्र का अधिकार रखता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित पूर्व चुनाव आयुक्त ओ. पी .रावत और पी आर एस लेजिसलेटिव रिसर्च के अध्यक्ष एम. आर .माधवन से बातचीत पर आधारित।