आइए, अपनी पुलिस-व्यवस्था में सुधार करें

Afeias
09 Nov 2022
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देश की पुलिस अक्सर खबरों में रहती है, और अक्सर गलत कारणों से खबरों में रहती है। इस कारण से समय-समय पर इसके प्रति हमारा आक्रोश दिखाई देता रहता है। तब पुलिस सुधार पर बहस भी होती है, लेकिन कुछ ही समय में इसे भुला दिया जाता है। 16 वर्ष पहले उच्चतम न्यायालय ने पुलिस के दूरगामी सुधारों पर निर्णय दिया था। इस ऐतिहासिक निर्णय में शासन की पुलिस को आम जनता की पुलिस में बदलने की क्षमता थी।

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटी के एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि 25% से भी कम लोग भारतीय पुलिस पर भरोसा करते हैं। हमारी पुलिस का इतिहास भयावहता से अटा पड़ा है। इसमें सुधार के लिए समय-समय पर कई आयोगों का गठन किया गया है। इनकी अनुशंसाओं का निचोड़ ही उच्चतम न्यायालय के सात निर्देशों में दिया गया है। अगर आज भी सुधारों की पहल की जाती है, तो बहुत कुछ बदला जा सकता है।

कुछ बिंदु –

  • पुलिस और कार्यपालिका के बीच समीकरण को बदला जाना चाहिए। सभी आयोगों ने पुलिस में भ्रष्टाचार, क्रूरता, एफआईआर दर्ज न करने, मनमानी, काम के लंबे घंटे, कर्मचारियों की कमी, अपर्याप्त प्रशिक्षण जैसे मुद्दे उठा, हैं। सभी ने सिफारिश की है कि नियुक्ति, स्थानांतरण कार्यकाल की सुरक्षा, जांच की कार्यप्रणाली को कानून-व्यवस्था से अलग करना आदि को राजनीतिक प्रभाव से बचाने के लिए एक पारदर्शी व्यवस्था हो।

  • पुलिस में सुधार हेतु राज्यों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसकी शुरूआत ऊपर से होनी चाहिए। भाजपा शासित राज्यों में पुलिस सुधारों का परीक्षण करने का प्रयास किया जाना चाहिए। पुलिस आधुनिकीकरण के लिए वित्तीय अनुदान की व्यवस्था होनी चाहिए।

  • पुलिस प्रशिक्षण में सुधार की शुरूआत होनी चाहिए। इसके लिए सिपाहियों को पहले चुना जाए, जो बल का 85% हैं। वर्तमान प्रशिक्षण सुविधा, समुदाय के साथ सहमति और सहयोग से पुलिसिंग सिखाने के बजाय पुलिस के ‘शक्ति’ पक्ष पर जोर देती हैं। इसे बदला जाना चाहिए।

  • पुलिस को आम जनता के प्रति शुरूआती विनम्रता का पाठ सिखाया जाना चाहिए। सुधारों के साथ ही पुलिस अधिकारी गलत आदेशों के खिलाफ खड़े होने की ताकत ला सकेंगे।

75 वर्षों की आजादी के बाद, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के नागरिकए एक ऐसी पेशेवर पुलिस के अधिकारी हैं, जिसे वे सम्मान दे सकें और जिस पर भरोसा कर सकें। वे एक पुलिस बल नहीं, बल्कि पुलिस सेवा चाहते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित गुरचरण दास के लेख पर आधरित। 23 सितम्बर, 2022