राजनैतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव

Afeias
10 Nov 2022
A+ A-

To Download Click Here.

भारत के चुनाव आयोग ने किसी भी राजनैतिक दल के लिए ‘स्थायी अध्यक्ष’ के विचार को खारिज कर दिया है। दरअसल यह मुद्दा आंध्रप्रदेश के सत्तासीन दल के संदर्भ में उठा था। युवजन श्रमिक रायथ कांग्रेस पार्टी ने जुलाई 2022 में जगन मोहन रेड्डी को आजीवन इसके अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था। चुनाव आयोग का कहना है कि ऐसा कदम लोकतंत्र विरोधी है। कुछ बिंदु –

  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने वाली किसी भी पार्टी को अपने संघ के कार्यों के रूप में औपचारिक और आवधिक चुनाव कराने चाहिए।
  • भारत में राजनैतिक दल असंख्य प्रकार के हैं। इनमें से कुछ संरचित और कैडर आधारित संगठन हैं, जो एक वैचारिक लक्ष्य या सिद्धांत को लेकर काम करते हैं, जैसे भारतीय जनता पार्टी या कम्यूनिस्ट पार्टी। वहीं कांग्रेस जैसे दलों में अलग-अलग विचारों वाले व्यक्तियों की शिथिल संरचना है, लेकिन फिर भी वे एक केंद्रीय वैचारिक बिंदु के इर्द-गिर्द काम करते हैं। कुछ और हैं, जो सामाजिक या क्षेत्रीय पक्षों को लेकर चलते हैं। भारत की संघीय और बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था ने भी वंशवाद या व्यक्तिगत प्रभाव के लोगों के प्रभुत्व को बढ़ावा दिया है। इसमें वित्तीय अनुदान भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यही कारण है कि आज अनेक दलों में आंतरिक चुनाव पर ज्यादा जोर नहीं दिया जाता है। कांग्रेस पार्टी में कुछ इसी प्रकार का दृश्य देखने को मिल रहा है।
  • कुछ राजनैतिक दल आंतरिक चुनाव से उपजने वाले असंतोष से डरते हैं। वे नामांकन और नेतृत्व पर असहमति को लेकर आशंकित रहते हैं।
  • चुनाव आयोग की कोशिश रहती है कि वह 1951 के जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए के तहत पार्टियों के पंजीकरण के लिए दिशा-निर्देश जारी करे। साथ ही वह दलों को हर पांच साल में आंतरिक चुनाव कराने और नेतृत्व-परिवर्तन की याद दिलाता रहता है। लेकिन दुर्भाग्यवश आयोग के पास कोई वैधानिक शक्ति नहीं है कि वह दलों को बाध्य कर सके।

इस प्रकार की वास्तविक शक्ति की कमी के कारण आयोग के आदेशों को यांत्रिक तरीके से लिया जाता है। जरूरी है कि आंतरिक लोकतंत्र का यह मुद्दा सार्वजनिक बहस का विषय बने। जनता का दबाव शायद पार्टियों को सही तरीके से काम करने के लिए प्रेरित कर सके।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 सितम्बर, 2022

Subscribe Our Newsletter