राजनैतिक दलों को भ्रष्टाचार मुक्त करने की जरुरत

Afeias
25 Jan 2017
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Date: 25-01-17

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सरकार के विमुद्रीकरण के उद्देश्य में एक जो अनछुआ पहलू रह गया, वह है- राजनैतिक दलों का भ्रष्टाचार। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि विमुद्रीकरण का कोई प्रभाव राजनैतिक दलों पर न पड़ा हो। प्रभाव पड़ा है, लेकिन इतना नहीं कि इस मुहिम से हमारे देश की राजनीति बिल्कुल पाक साफ हो गई हो।

वर्तमान सरकार ने आज तक राजनीति को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। इसके कारण आज भी जनता को यही लगता है कि देश में उनके लिए अलग कानून हैं और तथाकथित भ्रष्टाचारी नेताओं के लिए अलग कानून। अब सवाल उठता है कि क्या 2017 में सरकार जनता को विमुद्रीकरण के त्रास से राहत दिलाने जैसा कुछ कर पाएगी ? क्या राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए इनके वित्तिय कोश पर शिकंजा कसा जा सकेगा ? अगर सरकार ऐसा करने के लिए वाकई प्रतिबद्ध हो जाए तो निम्न कुछ उपाय किए जा सकते हैं।

  • राजनैतिक दलों को मिलने वाली नकद दानराशि को समाप्त कर दिया जाए। जब सरकार डिजीटलीकरण पर इतना बल दे रही है, तो क्यों न इसमें सभी राजनैतिक दलों के कोश भी शामिल हों ?
  • वर्तमान में राजनैतिक दलों को 20,000 तक की दानराशि बिना किसी स्पष्टीकरण के ग्रहण करने की सुविधा है। इसका लाभ उठाते हुए राजनैतिक दल अपने कोश की 70% आय इसी श्रेणी में रख देते हैं। हाल ही में चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPI-Representation of the People Act) में सुधार कर इस दानराशि को 2,000 करने की अनुशंसा की है। यह फिर से एक गलत कदम होगा। राजनैतिक दलों में पूर्ण पारदर्शिता लाने के लिए उसके हर पैसे का हिसाब दिखाया जाना जरूरी है।
  • राजनैतिक दलों के बहीखाते का ऑडिट किसी चार्टर्ड अकांउटेंट द्वारा करवाया जाता है। इस पर राजनैतिक दल अक्सर यह दलील देते हैं कि ऑडिट के बाद उनके कोश पर शक नहीं किया जाना चाहिए। यहाँ सवाल यह है कि इस काम पर लगाए गए किसी दल के चार्टर्ड अकांऊटेंट पर कितना भरोसा किया जा सकता है ? इस समस्या को सुलझाने के लिए सन् 2014 में चुनाव आयोग ने चार्टर्ड अकांऊटेंट ऑफ  इंडिया के साथ मिलकर राजनैतिक दलों के कोश के लिए कुछ दिशानिर्देश दिए थे, जिनकी अपनी सीमा है। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह दलों की आय के हिसाब-किताब के लिए कुछ आवश्यक कानून बनाए और इसका ऑडिट किसी ऐसे चार्टर्ड अकांऊटेंट से कराए, जो राजनैतिक दलों के किसी प्रभाव में न आएं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 29ए में संशोधन करके चुनाव आयोग को उन दलों के पंजीकरण रद्ध करने का अधिकार दिया जाए, जो इन दिशानिर्देशों के विरूद्ध जाएं।
  • वर्तमान कानून के अनुसार चुनाव से पहले उम्मीद्वारों को अपनी संपत्ति और आय का पूरा ब्यौरे चुनाव आयोग को देना होता है। इस कानून में किसी उम्मीद्वार के द्वारा गलत ब्योरा दिए जाने पर दण्ड का कोई प्रावधान नहीं है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि वह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 125 ए में संशोधन करे और दोषी उम्मीद्वारों को दण्डित करने का प्रावधान रखे।सरकार चाहे विमुद्रीकरण से भ्रष्टाचार कम होने के कितने की नारे लगा ले, क्या वह राजनैतिक दलों को भ्रष्टाचार करने के तरीके ढूंढने से रोक सकती है ? कुछ भी हो, सरकार के ऐसे अप्रत्याशित कदम कहीं न कहीं समूचे देश के कोनों में छिपी गंदगी को कम करने का काम जरूर करेंगे।

     इंडियन एक्सप्रेस में मिलन वैष्णव के लेख पर आधारित।

 

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