स्वास्थ्य सेवाओं के एकीकृत समाधान की आवश्यकता है।
Date:18-12-17
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भारत में निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के प्रति लोगों के मन में गहरा असंतोष है। हाल ही में निजी क्षेत्र के बड़े अस्पतालों के तीन ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें अस्पताल की लापरवाही के कारण बच्चों की मौत हुई है।
स्वास्थ्य सेवाओं का मूल्यांकन करने पर तीन प्रमुख स्तरों पर कमियाँ दिखाई देती हैं, जिन्हें दूर करना कोई बड़ी बात नहीं है। (1) स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, (2) गुणवत्ता, तथा (3) कीमत। इन तीनों समस्याओं के समाधान ऐसे हों, जो सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य हों, या फिर धारणीय विकास के लक्ष्यों में निहित यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज जैसा कोई प्रावधान किया जाए।
- स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता
- हमारे देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों एवं शहरों की निचली बस्तियों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच ही न के बारबर है।
- जिला स्तर के अस्पतालों एवं नर्सिंग होम में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के बाद के स्तर की सेवाओं की कमी है। रोग के थोड़ा भी जटिल होने पर रोगी को किसी बड़े जिले के अस्पताल ले जाया जाना आम बात है।
- बड़े-बड़े कार्पोरेट अस्पतालों में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं और यहाँ के मेडिकल टूरिज्म को बढ़ावा देने की क्षमता है, परन्तु इन अस्पतालों में गरीब जनता की कोई सुनवाई नहीं है। सस्ती सरकारी जमीन पर बने इन अस्पतालों के 20 प्रतिशत बिस्तर गरीब जनता के लिए रखने के सरकारी निर्देश के बावजूद ये इस बात का खुला मजाक उड़ाते हैं।
- इस क्षेत्र में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े सरकारी संस्थानों के पास धन एवं प्रबंधकीय देखरेख की कमी है।
- समाधान
- सभी स्तरों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का प्रसार किया जाना चाहिए। इसके लिए सार्वजनिक धन का निवेश, स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाना, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंध कैडर जैसे संस्थानों के माध्यम से उचित प्रबंधन आदि को व्यवहार में लाना होगा।
- ऐसे प्रावधान राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में किए गए हैं। इनको शीघ्र अमल में लाए जाने की आवश्यकता है।
- जन कल्याण हेतु सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में कर्मचारियों या प्रतिभा की कमी को निजी क्षेत्र के लोगों की अनुबंध आधारित भर्ती के द्वारा सुलझाया जाना चाहिए।
- स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता
- स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का संबंध रोगी के लिए आवश्यक लैब परीक्षण एवं उपचार, रोगी एवं परिवारजनों की संतुष्टि तथा मानवीय एवं संस्थागत आधार पर रोगी की देखभाल करने वालों की उपलब्धता से है।
इस प्रकार की गुणवत्ता के लिए वैज्ञानिक एवं नैतिक पहल की जरूरत होगी।
- समाधान
- ऐसा सब संभव किए जाने के लिए क्लिनिकल एस्टेबलिश्मेन्ट एक्ट एक अच्छा उपाय हो सकता है।
- इस एक्ट के माध्यम से रोगी के पंजीकरण, उपकरणों एवं सेवाओं के स्तर की गुणवत्ता, अस्पताल-प्रबंध संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन, शिकायतों पर ध्यान देकर उनका निवारण करने का प्रबंध एवं रोगी के अधिकारों की यथाचित सुरक्षा आदि विषयों को नियंत्रण में लाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की कीमत
- स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले भारी खर्च से समाज का एक वर्ग आर्थिक रूप से विपन्नता की स्थिति में ही जीवन जीने को मजबूर रहता है।
- गरीब एवं अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाली बड़ी संख्या के लोगों को स्वास्थ्य बीमे की सुविधा नहीं मिल पाती है।
- सरकार द्वारा पोषित बीमा योजनाओं में केवल अस्पताल में भर्ती होने का खर्च ही दिया जाता है। रोगियों को ओपीडी में काफी रकम खर्च करनी पड़ती है।
- समाधान
- सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सकल घरेलू उत्पाद के खर्च को 2025 तक बढ़ाकर5 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य की सीमा को 2019 किया जाना चाहिए।
- ‘सिंगल पेपर सिस्टम’ के अंतर्गत सभी केन्द्रीय एवं राज्य बीमा योजनाओं एवं नियोक्ता द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं की टैक्स फंडिंग की पूलिंग की जानी चाहिए। इसके लिए एक स्वायत्त प्राधिकारण का गठन किया जाए, जो सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधाएं ले सके।
- इस सिंगल पेपर सिस्टम में गुणवत्ता के निर्धारण के लिए सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को कड़े अनुशासन के अंतर्गत लाना होगा। साथ ही कीमतों के नियंत्रण के लिए मोल-भाव करना जरूरी होगा।
स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, गुणवत्ता एवं कीमत पर एक एकीकृत प्रयास की आवश्यकता है। इसको सुनिश्चित करने के लिए यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज को अपनाना आज हमारी आवश्यकता बन चुकी है। लेकिन इसकी सफलता के लिए एक सशक्त नियमन प्रक्रिया का होना बहुत जरूरी है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित के.श्रीनाथ रेड्डी के लेख पर आधारित।