लचर स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारा जा सकता है

Afeias
10 Feb 2017
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Date:10-02-17

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सन् 2015 में भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 10 लाख 26 हजार बच्चों की मौत हुई। इनमें से आधे तो अपने जन्म के पहले माह में ही मौत का शिकार हो गए। वहीं दूसरी ओर इसी वर्ष हमने लगातार आठ उपग्रह एक साथ छोड़े जाने का इतिहास रचा। इसे हम अपना दुर्भाग्य ही मान सकते हैं कि एक ओर तो हम मंगल ग्रह पर मिशन भेजने में सक्षम हैं, परंतु दूसरी ओर हम किसी गाँव में प्रसव-पीड़ा से तड़प रही माँ की मदद के लिए नहीं पहुँच पाते। आज हम सॉफ्टवेयर के सबसे बड़े निर्यातक हैं, लेकिन दूसरी ओर इन सॉफ्टवेयर को बनाने वाले युवाओं के स्वास्थ्य की ओर हमारा ध्यान नही के बराबर है।

दोनों पक्षों की ये चरम स्थितियाँ हमारी नसों और अंतर्रात्मा को क्यों नहीं झकझोरती ? अब समय आ गया है कि हम विकास के पथ पर चलते हुए अपनी सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सेवाओं की बिल्कुल भी अनदेखी न करें एवं उन्हें चुस्त-दुरूस्त रखने के उतने ही प्रयास करें, जितने कि हम मंगलयान और सॉफ्टवेयर के निर्माण में कर रहे हैं।

भारत ने धारणीय विकास के लक्ष्यों को अपनाया है। इन लक्ष्यों में न. 3 स्वास्थ्य से ही जुड़ा हुआ है, जो सभी उम्र के लोगों के लिए अच्छे स्वास्थ्य और अच्छे जीवन स्तर की वकालत करता है। भारत के लिए इस लक्ष्य को पाना आसान नहीं होगा, क्योंकि अगर बीमारियों के लिहाज से असंकामक रोगों या जीवन-शैली जन्य रोगों का प्रतिशत देखें, तो वह 63%  के करीब है, जिसके आगामी दशक में 78% हो जाने की संभावना है। इन बीमारियों का प्रभाव हमारे सर्वाधिक सक्षम वर्ग पर पड़ रहा है। साथ ही इन रोगों के ईलाज का खर्च घातक रोगों के ईलाज से कई गुना अधिक होता है।

रोगों की तीव्रता और बढ़ती संख्या को देखते हुए इनके निदान एवं उपचार का बोझ अकेले सरकार पर नहीं डाला जा सकता। हम देख भी रहे हैं कि निजी क्षेत्र ने इस दिशा में अनेक प्रयास किए हैं। अगर पूरे पिछले दशक पर नज़र डालें, तो स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र का बहुत योगदान रहा है। इस क्षेत्र ने स्वास्थ्य सेवाओं में बुनियादी सुविधाओं के अलावा उच्चतम तकनीकों का भी उपयोग किया है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिला है। इंतजार इस बात का है कि अब सरकार भी इस क्षेत्र में साधन संपन्न होकर स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतों को कम करने के लिए सामने आए। इन सब प्रयासों के लिए सरकार को कुछ निम्न कदम उठाने की आवश्यकता होगी –

  • स्वास्थ्य सुरक्षा को ‘राष्ट्रीय प्राथमिकता‘ के रूप में घोषित करना होगा। इस प्राथमिकता को बजट में ऊपर का स्थान देना होगा, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में उéतिशील संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की जा सके। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिल सके।
  • इस उद्योग को ‘जीरो रेटिंग जीएसटी‘ के अंतर्गत रखा जाए। साथ ही ऐसी व्यवस्था की जाए कि इस क्षेत्र को ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट‘ का लाभ मिल सके।
  • सन् 1961 के आयकर अधिनियम की धारा 35 ए डी के अंतर्गत 150% के भार से लदी (150%  Weighted Depreciation Scheme) अवमूल्यन योजना को पाँच वर्षों के लिए बढ़ा दिया जाए।
  • इस क्षेत्र को मीनीमम ऑल्टर्नेट टैक्स (Minimum Atlernate Tax) से छूट दी जानी चाहिए। साथ ही रियल एस्टेट इंवेस्टमेन्ट ट्रस्ट के अधीन आने वाले ढ़ांचों को कैपीटल गेन टैक्स से भी छूट दी जाए। इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
  • अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियों में संलग्न देशी संस्थानों को 200% के (Weighted Deduction) के लिए 10 वर्ष की अवधि मिलनी चाहिए। साथ ही इस क्षेत्र में अनुसंधान के प्रयासों में जोश से जुटे स्वदेशी संस्थानों के लिए डिडक्शन को 250% करने पर विचार किया जाना चाहिए।
  • अस्पतालों के अधिग्रहण और विलय को सरल एवं आकर्षक बनाने के लिए इसे आयकर अधिनियम की धारा 72ए के अंतर्गत औद्योगिक उपक्रम की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
  • जीवनरक्षक उपकरणों पर लगाए जाने वाले आयात शुल्क पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। हो सके, तो इन्हें शुल्क मुक्त ही कर दिया जाए, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की कीमत में भी कमी आएगी और बहुत से जीवनों की रक्षा की जा सकेगी।

                                हमें इस बात को समझना होगा कि बीमारी या रोग व्यक्तिगत नहीं होते। इसका निराकरण समग्र रूप से किया जा सकता है। हमारी स्वास्थ्य सेवाओं का आधार अब लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की शिक्षा देने पर होना चाहिए। भारत को स्वस्थ बनाने का उत्तरदायित्व व्यक्तिगत एवं निजी क्षेत्र के प्रयासों से सरकार को सहयोग देना है। हमारे देश की इस जटिल समस्या को सुलझाने के लिए कोई जादुई मंत्र तो नहीं है, जो क्षणभर  में कायापलट कर दे। परंतु ऐसा भी नहीं है कि हम अपेक्षित उपायों को तत्परता से अपनाकर इसे सुलझा न सकें।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित सुनीता रेड्डी के लेख पर आधारित।, (लेखिका अपोलो हॉस्पिटल एंटरप्राइजेज लि. की एम.डी. हैं।)

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