स्वास्थ्य-सेवाओं में सुधार के लिए विदेशों से सीख जरूरी

Afeias
21 Sep 2017
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Date:21-09-17

 

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हाल ही में उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में हुई बच्चों की मौतों से दशकों से चली आ रही भारत की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति फिर से सुर्खियों में आ गई है। ग्लोबल बर्डन आॅफ डिसीस के ताजा अध्ययनों के अनुसार भारत का 154वां स्थान है,जो चीन, श्रीलंका और बांंग्लादेश से भी नीचे है।

स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षा

स्वास्थ्य का विषय राज्यों से जुड़ा हुआ है। ऐसा देखने में आया है कि जनसंख्या में लगातार वृद्धि के बावजूद राज्यों ने अपने स्वास्थ्य बजट में कटौती जारी रखी है। राज्यों के राजनैतिक एजेंडे में स्वास्थ्य कभी प्राथमिक नहीं रहा।

पूरे विश्व में वैज्ञानिक खोजों एवं तकनीकी विकास के कारण संक्रामक रोगों में कमी आई है। महामारियों पर नियंत्रण संभव हो पाया है। इसके बावजूद उत्तरप्रदेश जैसी राज्य सरकारों केे जन स्वास्थ्य के प्रति संज्ञान न ले पाने के कारण ऐसी विपदाएं आ पड़ती हैं।

कभी स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अव्वल रहा केरल राज्य भी आज पिछड़ा हुआ है। सन् 1980 के बाद से उसे पर्याप्त संसाधन ही नहीं मिल पा रहे कि वह स्थिति में सुधार कर सके।

वैश्विक स्थिति

विश्व के अन्य देशों में स्वास्थ्य को आवश्यक सुविधा मानते हुए इसे प्राथमिकता पर रखा गया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही यूरोपीय देश इस ओर बहुत अधिक ध्यान देने लगे हैं। यूरोपीय यूनियन के देशों में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च का 80-90 प्रतिशत सरकार वहन करती हैं, जबकि भारत में यह 30 प्रतिशत से भी कम है।

भारत में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के अपेक्षाकृत स्तरीय न होने के कारण लोग निजी क्षेत्रों की ओर भागते हैं। प्रतिवर्ष निजी अस्पतालों के बिल देने के कारण लगभग 6 करोड़ लोग यहाँ गरीबी का शिकार बन जाते हैं।

इस मामले में थाईलैण्ड, क्यूबा और कोस्टारिका ने अलग-अलग तरीके अपनाकर अपने देश में विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करा दी हैं। थाईलैण्ड ने तो इसे संवैधानिक अधिकार बना दिया है और स्वास्थ्य अधिनियम के द्वारा इस क्षेत्र में ढांचागत सुधार किए हैं।

क्यूबा में भी स्वास्थ्य पाना एक अधिकार है। वहाँ के स्वास्थ्य सूचक किसी विकसित देश के बराबर हैं। आज वहाँ की शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 4.2 है। पाँच दशक पहले यही दर 100 पर 4.2 थी। वहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में वही सब समस्याएं थीं, जो आज उत्तरप्रदेश एवं अन्य राज्यों में हैं। वहाँ की सरकार ने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए रोग निवारक पद्धति की बजाए सुरक्षात्मक पद्धति पर काम किया।

हम भी अगर अपने देश की जनता के स्वास्थ्य को उत्तम स्तर तक पहुँचाना चाहते हैं, तो हमें पर्याप्त संसाधन जुटाने होंगे। सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदलना होगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सौमित्र घोष के लेख पर आधारित।

 

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