स्कूली शिक्षा का पुनरूत्थान जरूरी

Afeias
15 Dec 2017
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Date:15-12-17

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90 वर्ष पहले रविन्द्रनाथ टैगोर ने भारत में शिक्षा की स्थिति को लेकर जैसा लिखा था, आज भी वैसी ही खराब स्थिति बनी हुई है। उन्होंने लिखा था कि ‘आज भारत के हृदय पर जो बड़ा बोझ है, उसका एकमात्र कारण शिक्षा का अभाव है।‘

  • भारत में साक्षरता के स्तर के बारे में भले ही बढ़-चढ़कर बातें की जाती रही हैं, परंतु शिक्षा के स्तर पर स्थिति बहुत ही भयावह है। हमारे 15 वर्ष तक के बच्चों में शिक्षा का स्तर इतना नीचा है कि पठन और गणना के लिए चलाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में भाग लेने में भी हम हिचकते हैं। अधिकतर बच्चे अपनी कक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं।
  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय के डॉटा से पता चलता है कि प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों में से आधे ही उच्चतर प्राथमिक स्तर तक पहुँचते हैं। इनमें से भी आधे यानी 2 करोड़ 5 लाख के करीब बच्चे 9वीं से 12वीं कक्षा में पहुँचते हैं।
  • हमारे देश में लगभग दस लाख प्राथमिक विद्यालय हैं। माध्यमिक विद्यालयों की संख्या इससे आधी है। उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की संख्या मात्र डेढ़ लाख से क्रमशः घटती हुई एक लाख तक रह जाती है। प्राथमिक विद्यालयों में कुल 50 लाख शिक्षक हैं। इनकी संख्या माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक तक 10 से 15 लाख रह जाती है। कुल मिलाकर भारत ऐसी शिक्षा प्रणाली का अनुसरण कर रहा है, जिसने हमारे युवा वर्ग को पंगु बना दिया है।
  • शिक्षा के अधिकार के साथ प्राइवेट स्कूल सिस्टम ने सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में बहुत ज्यादा गिरावट दर्ज की है। जबकि वे सरकारी स्कूल जिनको शिक्षा प्रणाली का वाहक होना चाहिए, वे कतार में बहुत पीछे खड़े हैं। इसे संभव बनाने के लिए सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था के पुनरूत्थान की आवश्यकता है। जिला स्तर पर बने इंस्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन एण्ड ट्रेनिंग इस व्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार हैं। इनको शिक्षकों के प्रशिक्षण की ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि उनके संरक्षण और निर्देशन में बच्चे स्कूल छोड़ना ही न चाहें।
  • भारत को चाहिए कि वह अपनी स्कूली शिक्षा को एक महत्वपूर्ण बुनियादी कार्यक्रम का दर्जा देते हुए उस पर रणनीतिक निवेश करे। हम सदियों से एक विफल शिक्षा प्रणाली को ढोते चले आ रहे हैं। अब समय आ गया है, जब हमें विश्व की सफलतम एवं बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था से सीखकर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना होगा। इस संदर्भ में फिनलैण्ड का उदाहरण लिया जा सकता है।
  • अगर भारत ने उदारीकरण के दौर की शुरुआत के साथ ही इस ओर ध्यान दिया होता, तो आज देश में विश्व की सुशिक्षित एवं कुशल प्रशिक्षित कर्मचारियों की सबसे बड़ी जमात खड़ी दिखाई देती।

आज भी भारत में युवा वर्ग की संख्या बहुत ज्यादा है। अगर इनको हम विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करने में सफल हो गए, तो बहुत जल्द भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में देखा जा सकेगा।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित उदय बालकृष्णन के लेख पर आधारित।

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