बाल-श्रम के अपमान से मुक्ति कैसे मिलेगी?

Afeias
14 Dec 2017
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Date:14-12-17

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हाल ही में ब्यूनस आर्यस में बालश्रम पर लगभग 100 देशों का सम्मेलन हुआ, जिसमें ऐसी आशंका जताई गई कि अधिकांश सदस्य देश 2025 तक बाल-श्रम को समाप्त करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे। ऐसा अनुमान भी लगाया गया कि 2030 तक धारणीय विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के 20 वर्ष बाद कहीं जाकर बाल-श्रम का उन्मूलन किया जा सकेगा।अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने एक अनुमान लगाया है कि आज से आठ वर्ष बाद भी लगभग 1 अरब 21 करोड़ बच्चे अलग-अलग कामों में लगे पाए जा सकते हैं। अभी 5-17 वर्ष के बीच के काम करने वाले बच्चों की संख्या 1 अरब 52 करोड़ है।देशों को अपने प्रयासों में तेजी लाने का प्रयत्न करके लगभग 1 करोड़ 9 लाख बच्चों को प्रतिवर्ष बाल-श्रम से मुक्ति दिलाने का लक्ष्य रखना चाहिए। हालांकि पिछले कुछ वर्षों की स्थिति को देखते हुए ऐसा कर पाना असंभव सा दिखाई दे रहा है। 2012-16 तक बाल श्रम में मात्र 1% की कमी देखी गई है। सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति यह है कि 2012 से लेकर 2016 तक 12 वर्ष तक के बच्चों को बाल-श्रम से मुक्ति दिलाने का कोई प्रयत्न सफल नहीं हो सका है। इस अवधि में लड़कों की तुलना में केवल आधी लड़कियों को ही मुक्ति दिलाई जा सकी है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल-श्रम से मुक्ति दिलाने में देशों की असफलता के पीछे कुछ कारण बताए हैं। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में बच्चों को जिन घातक उद्योगों से दूर रखने की बात की जाती है, उनके बारे में देशों के पास कोई सशक्त कानून नहीं हैं। ऐसे उद्योगों में श्रमिक की न्यूनतम आयु से संबंधित कानून भी नहीं है। इन सबके बीच देशों में अनिवार्य स्कूली शिक्षा एवं रोज़गार के लिए न्यूनतम आयु के कानून में कोई तादाम्य नहीं है। औपचारिक अर्थव्यवस्था में श्रम संबंधी निरीक्षणों की कमी से बाल श्रम संबंधी कानूनों में कई विसंगतियां देखी जा रही हैं। लगभग 71%  बच्चे कृषि कर्म में लगे हुए हैं, जिनमें से 69% बच्चों को परिवार की ही इकाई में काम करने के कारण कोई वेतन नहीं दिया जाता।

उपा

  • बाल-श्रम को रोकने के लिए एक सशक्त दंडात्मक कानून की आवश्यकता है।
  • युवा एवं वयस्कों को अधिक-से-अधिक काम देकर बच्चों को श्रम से बचाया जा सकता है।
  • बाल-श्रम जैसी नीतियों को सामाजिक सुरक्षा की कुछ सक्रिय नीतियों के सहारे आगे बढ़ाया जा सकता है।

हिंदू में प्रकाशित गरिमल्ला सुब्रहमण्यम के लेख पर आधारित।

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