बल श्रम कानून

Afeias
17 Aug 2016
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Date: 17-08-16

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हाल ही में संसद ने बाल श्रम कानून में दो सुधार किए हैं-

  1. 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए किसी भी तरह के श्रम की कानूनी तौर पर मनाही कर दी गई है।

गौरतलब है कि पहले सरकार द्वारा निर्धारित खतरनाक श्रम की सूची के अलावा वे अन्य कार्यों में संलग्न किए जा सकते थे।

  1. 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों को सरकार द्वारा निर्धारित खरतनाक श्रम की सूची के अलावा अन्य प्रकार के श्रम में संलग्न किया जा सकता है।

यहाँ जानने योग्य है कि संशोधन से पहले इस आयु वर्ग के बच्चों को किसी भी प्रकार के श्रम कानूनों के दायरे में लाया ही नहीं गया था।

 

वर्तमान कानून में कुछ कमियाँ –

  • संशोधित कानून में 14 वर्ष तक के बच्चों को ऐसे पारिवारिक कामों में लगाया जा सकता है, जो खतरनाक श्रम के अंतर्गत न हों, बशर्ते कि यह श्रम स्कूल के बाद या छुट्टियों में कराया जाए। संशोधित कानून में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पारिवारिक कार्यों में माता-पिता के अलावा उनके अन्य भाई-बहनों के कार्यों को भी शामिल किया जाएगा। साथ ही परिवार के किसी भी सदस्य का अन्य किसी व्यक्ति के साथ किया जाने वाला संयुक्त कार्य भी इस दायरे में आएगा।
  • इस संशोधन से ऐसा लगता है कि सरकार ने बाल श्रम को रोकने की बजाय अब उसकी खुली छूट दे दी है। गौर करने की बात है कि 80 प्रतिशत बालक खेतों, जंगलों, बीड़ी-उद्योग, कालीन-उद्योग, चूड़ी-उद्योग, ढाबे, ठेलों एवं अन्य घरेलू कामों में लगे हुए हैं। बाल-अधिकार के कार्यकर्ताओं ने उपरोक्त कार्यों को खतरनाक श्रम के अंतर्गत लाने के लिए सरकार से अनुरोध किया था, किन्तु सरकार ने नहीं सुनी। बल्कि इसके उल्टा ही कर दिया।
  • 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों को जिन खतरनाक श्रम से दूर रखने को कहा गया है, उसकी सूची में ऐसे श्रम 83 से घटाकर 3 कर दिए गए हैं। दूसरे तरीके से देखें, तो खदान और विस्फोटक से जुड़े केवल उन्हीं कार्यों को सूचीबद्ध नहीं किया गया है, जो वयस्कों के लिए भी खतरनाक श्रम की श्रेणी में आते हैं।
  • सन् 2011-12 में हुए सर्वेक्षण से पता चलता है कि लगभग 6 करोड़ महिलाएं पारिवारिक उद्यमों में संलग्न हैं। महिलाओं की सहायता के लिए स्पष्ट रूप से उसका बच्चा ही आगे आता है। इस प्रकार 14 से कम उम्र के बच्चे लगातार श्रम में लगे रहते हैं। प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के संवैधानिक अधिकार के बावजूद वे इससे वंचित रहते हैं।
  • अभी तक यह माना जाता है कि बाल श्रम के पीछे गरीबी एक बहुत बड़ा करण है, और जब तक गरीबी रहेगी, बाल श्रम चलता रहेगा। परंतु यदि दूसरे दृष्टिकोण से देखें, तो बाल श्रम के कारण ही गरीबी है, क्योंकि गरीब परिवार के बच्चे शिक्षा के बजाय यदि श्रम में ही लगे रहें, तो उनकी गरीबी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती जाएगी। यदि इसी को उल्टा करके देखें, तो गरीब परिवार का पढ़ा-लिखा बच्चा अपने परिवार को गरीबी से मुक्ति दिला सकता है।
  • इस संशोधन में बच्चों को पारिवारिक उद्यम में लगाने के प्रावधान से जातिवाद की बू आती है। इसका अर्थ है कि सफाई कर्मचारी का बच्चा उसी का पेशा अपना लेगा। इसी तरह के अन्य बहुत से उदाहरण देखने को मिलेंगे। एक कुम्हार का बच्चा कभी डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन पाएगा, क्योंकि पारिवारिक उद्योग के माहौल में पल- बढ़कर उसकी मानसिकता एवं परिवेश उसे अन्य किसी उद्यम के लायक नहीं बना पाएंगे।

इंडियन एक्सप्रेसमें हर्ष मंदर के लेख पर आधारित

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