समाजिक संस्थाओं पर घेराबंदी

Afeias
18 Aug 2016
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CC 18-Aug-16Date: 18-08-16

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  • एक स्वस्थ प्रजातंत्र के लिए सामाजिक संस्थाओं का होना बहुत जरूरी है। ये संस्थाएं सत्ताधारी सरकार के कामकाज पर नजर रखती हैं और समय-समय पर उनकी सकारात्मक आलोचना करके उन्हें गलत काम करने से भी रोकती हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून भी मानते हैं कि प्रजातंत्र के स्थायित्व के लिए मजबूत एवं स्वतंत्र सामाजिक संस्थाओं का होना अत्यंत आवश्यक है।
  • हाल ही में सामाजिक संस्थाओं के प्रति अपनाए जा रहे सरकारी रवैए से ऐसा लगता है कि भारत में इनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इस विषय पर नजर डालें तो तिस्ता सितलवाड़ा द्वारा चलाई जा रही संस्था सबरंग ट्रस्ट का नाम सबसे पहले आता है। यह गैरसरकारी संस्था सन् 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान हुए अत्याचारों के विरोध में आवाज उठा रही थी। इस संस्था को अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन से धनराशि भी मिल रही थी। इस संस्था का पंजीकरण रद्द करने के साथ ही सरकार ने इस पर सांप्रदायिक असहिष्णुता फैलाने का आरोप लगाकर फोर्ड फाउंडेशन को भी अपनी निगरानी सूची में डाल दिया। मजेदार बात यह है कि प्रधानमंत्री के अमेरिका दौरे को दख्ेाते हुए फोर्ड फाउंडेशन को कुछ ढील दे दी गई।
  • इसी क्रम में आगे प्रतिष्ठित वकील इंदिरा जयसिंह का नाम आता है, जिनके ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ नामक एनजीओ को एफसीआरए के नियमों का उल्ंघन करने के आरोप में छः माह के लिए निलंबित कर दिया गया।
  • ‘‘ग्रीनपीस इंडिया’’ नामक एनजीओ का भी एफसीआरए पंजीकरण रद्द कर दिया गया।
  • ये सभी संस्थाएं ऐसी हैं, जिन्होंने सरकार के अनैतिक और गैरकानूनी कामों के प्रति आवाज उठाई थी।
  • स्ंयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट दल ने सरकार के इस कदम को एफसीआरए के प्रावधानों का दुरुउपयोग बताया। उसने यह भी कहा कि सरकार ने इन संस्थाओं के सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, पर्यावरणीय या सांस्कृतिक मामलों में की जाने वाली छानबीन को दबाने की कोशिश की है।
  • सरकार ने न केवल इन संस्थाओं का पंजीकरण ही रद्द किया, बल्कि इन्हें देश-विरोधी बताते हुए आरोप भी लगाये कि ये संस्थाएं उन विदेशी शक्तियों के साथ मिली हुई हैं, जो भारत की आर्थिक प्रगति को रोकना चाहते हैं।
  • यह सच है कि एनजीओ की आड़ में कुछ सामाजिक संस्थाएं भ्रष्टाचार का अड्डा बनी हुई हैं। उनकी कार्यप्रणाली भी अप्रजातांत्रिक है। साथ ही उनमें पारदर्शिता भी नहीं है। ऐसी संस्था8ओं को दोषी ठहराया ही जाना चाहिए।
  • सरकार को प्रजातंत्र में इन सामाजिक संस्थाओं के महत्व को समझकर इनमें काम करने वाले लोगों की सुरक्षा का प्रयास करना चाहिए। प्रजातंत्र में किसी भी व्यक्ति को सरकारी नीतियों एवं आर्थिक प्रगति के बारे में प्रश्न पूछने एवं ऊँगली उठाने का पूरा अधिकार होता है।

इंडियन एक्सप्रेस’ में आफताब अस्लम के लख पर आधारित

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