संस्थाओं को जवाबदेह बनाया जाए

Afeias
16 Mar 2018
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Date:16-03-18

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हाल ही के पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले ने सरकार के कामकाज पर एक बार फिर से प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। मोदी सरकार बनने के साथ ही प्रधानमंत्री ने स्वयं को एक चैकीदार की भूमिका निभाने वाला बताया था। सरकार के चार वर्षों के कार्यकाल में ऐसे कोई परिवर्तन होते दिखाई नहीं दिए, जो ये दावा कर सकें कि प्रधानमंत्री की चैकीदारी ने फलां-फलां क्षेत्र में अराजकता या भ्रष्टाचार को कम कर दिया है। मुद्दे की बात यह है कि किसी एक नेता का भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई प्रण ले लेना स्वागत योग्य हो सकता है, परंतु भ्रष्टाचार एक संस्थागत कुरीति है, जिसके लिए संस्थाओं को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

  • चार वर्षों के कार्यकाल में सरकार ने एक भी लोकपाल नियुक्त नहीं किया है। सूचना आयोग के चारों पद खाली पड़े हुए हैं।
  • सीबीआई आज भी ‘पिंजरे में बंद‘ पक्षी है।
  • केंद्र सरकार ने गुजरात के आई. पी. एस. अधिकारी को जबरन विशिष्ट निदेशक पद पर नियुक्त कर दिया, जबकि उनके विरूद्ध अनियमितताओं की गंभीर शिकायतें थी। एक स्वतंत्र और संघीय पुलिस प्रणाली के गठन की सरकार की मंशा दिखाई ही नहीं देती।
  • चुनावों में आने वाली धनराशि पर बहुत समय से प्रश्न उठाए जा रहे हैं। इस पर कार्यवाही के रूप में चुनावी बांड की योजना लाई जा रही है। इससे दान के रूप में काला धन चुनावों में आता रहेगा।
  • सरकार का दावा है कि विमुद्रीकरण को भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक मुहिम के रूप में देखा जाना चाहिए। परंतु देश में फैला पूरा काला धन बैंकों में वापस आ चुका है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों का नेताओं के साथ पुराना गठजोड़ चला आ रहा है। केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा पंजाब नेशनल बैंक को पुरस्कार दिया जाना इस बात का जीता-जागता उदाहरण है।
  • सूचना के अधिकार को लगातार कमजोर किया जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय से मांगी गई अनेक सूचनाएं अनुत्तररित रहती हैं।

हाल ही में वित्तमंत्री ने कहा है कि नेता तो जवाबदेह हैं, परंतु नियमन संस्थाएं जवाबदेह नहीं हैं। इस संदर्भ में बैंकों की नियमन संस्था, आर बी आई, पर दोष मढ़ दिया गया है। सवाल यह है कि संस्थाओं को जवाबदेह बनाने के लिए क्या सरकार को उन्हें स्वायत्त और स्वतंत्र बनाने की ओर कदम नहीं उठाना चाहिए ? इन संस्थाओं को इतना आत्म-निर्भर बनाया जाए कि वे किसी बड़े-से-बड़े पदासीन व्यक्ति का दोष पाए जाने पर पीछे न हटें।

लोगों का हित तभी सधेगा, जब सरकार केंद्रीय सतर्कता आयोग, सीबीआई, न्यायालयों, सूचना के अधिकार तथा बैंकों की नियमन संस्थाओं को सशक्त, स्वायत्त एकता व अखंडता की भावना से उक्त लोगों के स्टाफ से परिपूर्ण रखेगी।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित सागारिका घोष के लेख पर आधारित।

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