
सुःशासन के पाँच मंत्र
Date:15-03-18
To Download Click Here.
- सबसे पहला सुधार चुनाव व्यवस्था में होना चाहिए। आज भी संसद एवं विधान सभाओं में अपराधियों का चुनकर आना जारी है। इन सबके बीच ईमानदार और योग्य लोग पीछे छूट जाते हैं। उन्हें डर होता है कि एक बाहुबली के सामने उनका जीतना मुश्किल है, और वे अपनी ईमानदारी की कमाई डूब जाने के डर से पीछे हट जाते हैं।
- चुनावों में प्रति वोट के हिसाब से सरकार ही उम्मीदवारों को धन दे।
- दूसरा सुधार नौकरशाही में होना चाहिए। सुःशासन के लिए एक चुस्त-दुरूस्त और ईमानदार नौकरशाही का होना बहुत जरूरी है। विश्व के मानकों की तुलना में हमारी नौकरशाही अयोग्य और गैर-जवाबदेह है। आई.ए.एस. जैसी ही अन्य प्रशासनिक सेवाओं को निश्चित अवधि से हटाकर अनुबंध आधारित करके इन्हें अच्छी धन राशि दी जाए। इतने ही परिवर्तन से प्रशासनिक वर्ग जवाबदेह हो जाएगा। सेवांए न देने एवं भ्रष्टाचार की स्थिति में नौकरी से तुरंत निकाले जाने की भी व्यवस्था हो।
- निजी संपत्ति की सुरक्षा की उचित व्यवस्था हो। हमारे संविधान में नागरिकों को संपत्ति खरीदने, रखने एवं उसे बेचने के अधिकार की गारंटी दी गई है। नेहरू व इंदिरा गांधी ने इस अधिकार में कमी करके ‘समाज की आपातकाल अवस्था में व्यक्तिगत अधिकारों को कम करने की व्यवस्था‘ कर दी थी। जनता पार्टी ने संविधान के 44 वें संशोधन के अनुच्छेद 19(1)(एफ) के द्वारा इसे खत्म कर दिया। जबकि किसी देश को सफलता तब तक नहीं मिल सकती, जब तक उसके नागरिकों की संपत्ति असुरक्षित रहती है। मोदी सरकार को चाहिए कि नागरिकों की संपत्ति के मौलिक अधिकार को बहाल करे।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ऐसा फलक है, जिसमें भारत विश्व स्तर पर बहुत पिछड़ा हुआ है। इसी प्रकार आस्था की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले पहरे हटाए जाने चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी देश की जनता के लिए एक ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से आगे चलकर अन्वेषण होते हैं। वर्तमान सरकार को नागरिकों के इस अधिकार के सबसे बड़े रक्षक की भूमिका निभानी चाहिए।
- सरकार को बेवजह के कामों में उलझने की बजाय प्रशासन के मूल मंत्र पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए राष्ट्रीय विचारधारा में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। देश के लोग त्रस्त हैं, और विकास करने से वंचित हो रहे हैं। पूरे देश की सरकारें, प्रशासन की दृष्टि से बहुत लचर हैं। इनमें से बहुत सी ऐसी हैं, जो सिर्फ वोट की राजनीति में लगी हुई हैं।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित संजीव सभलोक के लेख पर आधारित।