आर्थिक प्रगति से जुड़े पाँच सुधार

Afeias
17 Mar 2020
A+ A-

Date:17-03-20

To Download Click Here.

आर्थिक जगत का वैश्विक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। 2020 में भारतीय कंपनियों का झुकाव उस ओर हो रहा है, जिसे चीन ने 1978 में ही अपना लिया था। कंपनियां अपने उत्पादन को उपभोक्ताओं के अधिक नजदीक लाने का प्रयत्न कर रही है। दूसरी ओर, ऑटोमेशन ने मजदूरी को कम कर दिया है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में धनी देशों का धीमा विकास एक प्रकार से फायदेमंद है। अब उत्पादन से अधिक महत्वपूर्ण डिजाइन, शोध और रखरखाव को माना जा रहा है। अपने कुशल श्रमिकों, बेहतर बुनियादी ढांचे, पर्याप्त उपभोक्ताओं, अथाह पूंजी, विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों और हाइटेक कंपनियों के साथ धनी देशों का आधिपत्य बढ़ता जा रहा है। परन्तु यह तीस वर्ष पहले की चीन की प्रगति से भिन्न है। इन स्थितियों में भारत, जो कि सस्ते श्रम का लाभ उठाता रहा है, को पाँच नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

(1) श्रम कानून – श्रम और पूंजी एक दूसरे पर आश्रित हैं। हमें वेतन में सकल और हाथ में आने वाली राशि के बीच का अंतर कम करना होगा। सामाजिक सुरक्षा के लिए कर्मचारी बीमा, भविष्य निधि और रोजगार कानून में बदलाव लाने होंगे। इसका प्रभाव औपचारिक रोजगार में 50 प्रतिशत बढ़ोत्तरी के रूप में होगा।

(2) सार्वजनिक बैंक – आरबीआई को नियम और निरीक्षण में सुधार करना होगा। निजी बैंकों में प्रतिस्पर्धा बढ़ानी होगी, और सार्वजनिक बैंकों के प्रशासन और मानव संसाधन को सुधारना होगा। इससे सकल घरेलू उत्पादन अनुपात के लिए क्रेडिट को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत किया जा सकेगा। सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों में उत्पादन बढ़ सकेगा।

(3) उच्च शिक्षा – कुल पंजीकरण संख्या कम है, और स्नातकों के स्तर में काफी भिन्नता है। इसमें सुधार के लिए पंजीकरण को 50 प्रतिशत तक ले जाना होगा। उच्च शिक्षा का आधार व्यावसायिक हो, और नवाचार को प्रोत्साहित किया जाए। इससे बेरोजगार स्नातकों की संख्या कम होगी। वेतन और उत्पादकता में वृद्धि होगी।

(4) ईज ऑफ डुईंग बिजनेस (व्यापार में सुगमता) नियोक्ता – नियमन और अनुपालन की एक लंबी श्रृंखला को तार्किक बनाए जाने की आवश्यकता है। प्रक्रियाओं का डिजीटलीकरण हो। इससे भ्रष्टाचार में कमी आएगी।

(5) केन्द्र सरकार – केन्द्र सरकार में विभागों और मंत्रालयों का अंबार है। जापान में ये जहां 8, अमेरिका में 14 और ब्रिटेन में 22 हैं, वहीं भारत में 52 हैं। केन्द्र के कई मंत्रालय राज्यों के मामलों को नियंत्रित करते हैं। इस प्रक्रिया को बदला जाना चाहिए। राज्यों को निधि, पदाधिकारियों और कार्य सौंपे जाने पर विचार करना चाहिए। नौकरशाही में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता है।

इसके चलते मानव पूंजी, निवेश और विकास आधारित उत्पादकता में राज्यों की भूमिका बढ़ेगी।

नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल रोमर के अनुसार पूरा विश्व भारत के प्रति ‘सशर्त रूप से आशावादी’ है। हमें इस सोच में से सशर्त को हटाने की क्षमता विकसित करनी होगी।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित मनीष सबरवाल के लेख पर आधारित। 21 फरवरी 2020

Subscribe Our Newsletter