विकास के पाँच मॉडल और भारत

Afeias
10 Apr 2017
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Date:10-04-17

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  • आधुनिक अर्थों वाले विकास के कुल पाँच प्रमुख मॉडल हैं। इनमें से एक संयुक्त राज्य अमेरिका का है। इस मॉडल को अन्य कोई देश नहीं अपना सकता, क्योंकि वहाँ के करोड़ों मूल निवासियों के संपूर्ण विनाश और संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण करके संयुक्त राज्य अमेरिका का विकास किया जा सका है। शेष चार मॉडल-ब्रिटेन, रूस (सोवियत संघ), चीन और जापान के हैं। रूस में चार करोड़ और चीन में छः करोड़ किसानों की हत्या तथा उन्हें बेगार करने के लिए विवश करने की प्रक्रिया के द्वारा इन देशों का विकास संभव हुआ है। ब्रिटेन ने भारत सहित अनेक देशों के संसाधनों की लूट के बल पर यह विकास किया। जापान ने किसानों का सबसे कम शोषण किया, क्योंकि वहां किसानों में से ही उद्योगपति बने।
  • जापान को छोड़कर अन्य चारों मॉडल में एक बात सर्वमान्य और सर्वज्ञात रही है कि किसानों और खेती के साथ अन्याय और शोषण करके ही वह अतिरिक्त मूल्य संचित किया जाता है, जिससे आधुनिक विकास के लिए पूंजी जुटेगी। भारत में इस शोषण को न्यूनतम रखने का आग्रह डॉ॰ लोहिया तथा अन्य लोगों ने किया था। उन्होंने कारखाने के उत्पादन और खेती की उपज के दामों के बीच संतुलन रखने का भी आग्रह किया था। लेकिन हमारे यहाँ न तो कांग्रेस और न ही भाजपा उस नीति पर चली।
  • कम्युनिस्ट दल के चलने का तो प्रश्न ही नहीं था, क्योंकि वे इसे ऐसा वर्ग मानते हैं, जिसे विकास के ऐतिहासिक क्रम में नष्ट किया जाना है और रूपांतरित करना है। सोवियत संघ और चीन ने यही किया भी है। क्रूर लूट और नृशंस शोषण के जरिए पूंजी संचय के बिना आधुनिक किस्म का विकास असंभव है और यह लूट मुख्यतः खेती के साथ भेदभावपूर्ण नीति अपनाकर ही परोक्ष ढंग से की जाती है।
  • भारतीय सरकारें भी इस प्रकार के अन्याय सुविदित तरीकों से करती रही हैं। उन्होंने खेती के उपज के दामों को औद्योगिक उत्पादन की तुलना में हमेशा बहुत कम रखा। दूसरे, उद्योगों अर्थात् उद्योगपतियों को बिजली, आधारभूत ढांचे तथा अन्य अनेक सुविधाएं बहुत अधिक दीं। किसानों व भारत के अन्य मध्यम एवं निम्न वर्ग से वसूले गए करों से संचित भारतीय राजकोष से करोड़ों और अरबों रुपए के ऋण, समाजवादी दौर में उद्योगपतियों को रियायती ब्याज दरों पर दिया। उन्हें अनेक प्रकार की सब्सिडी दी। भारतीय राजकोष का खरबों रुपया इस प्रकार के ऋण में डुबोया जा चुका है, और आधारभूत संरचनाओं में खरबों रुपए लगाकर उद्योगपतियों के लिए परिवेश अनुकूल बनाया गया है।
  • विकास की राजनीति करने के नाम पर उद्योगपतियों की तरफदारी वाली नीति और विचार से कोई भी राजनेता या नीति-निर्धारक अनजान नहीं है। इसके चलते समाज में फैली विसंगतियों के परिणामस्वरूप ही आज भारतीय समाज में आत्महत्याएं, पारिवारिक क्लेश, बेरोज़गारी जैसी समस्याओं ने देश की दुर्दशा कर रखी है। इससे यह परिदृश्य उभरता है कि भारतीय राजनीति को भारतीय समाज की किसी भी वास्तविक और गंभीर समस्या से कुछ भी लेना-देना नहीं है। उसे यूरोप और अमेरीका की तर्ज पर विकास के लिए समर्पित रहना है तथा बीच-बीच में किसी भी एक समस्या पर विलाप करने लगना है।

जनसत्ता में प्रकाशित रामेश्वर मिश्र पंकज के लेख पर आधारित।

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