साइबर सुरक्षा की आवश्यकता

Afeias
30 May 2017
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Date:30-05-17

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  • हाल ही में न्यायालयों में आधार कार्ड को विभिन्न योजनाओं में अनिवार्य किए जाने के विरूद्ध अनेक याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। कुछ नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्त्ता आधार के द्वारा लोप होती निजता पर भी ऊँगली उठा रहे हैं। इनमें से पहली आशंका की अगर बात की जाए, तो न्यायालयों में याचिका दायर करने वाले या याचिका दायर करने वालों को उकसाने वाले वे लोग हैं, जो सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का गलत लाभ ले रहे हैं, और उन्हें डर है कि आधार को अनिवार्य कर दिए जाने से उनकी गलत चालें चल नहीं पाएंगी।
  • दूसरे, अगर आधार के द्वारा गोपनीयता या निजता भंग होने की बात करें, तो इसका आधार से कुछ लेना-देना ही नहीं है। विश्व में इतने बड़े और अनेक हैकर समूह सक्रिय हैं, जो समय-समय पर हमारे कम्प्यूटर और मोबाइल फोन की प्रत्येक गतिविधि को या तो हैक कर चुके हैं या हैक कर सकते है।सरकार को अपनी ऊँगलियों की छाप देने या आँखों की पुतलियों की फोटो देने से हमारी निजता पर कोई आँच नहीं आती है। अनेक देशों में आपके प्रवेश लेते ही आव्रजन अधिकारी ऊँगलियों और आँखों की पुतलियों की तस्वीरें लेते हैं। तब हमें कुछ भी बुरा नहीं लगता और इसे सामान्य समझा जाता है।
  • एक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार प्रतिदिन हमारे ई-मेल और फोन कॉल देखे और सुने जाते हैं। ऐसा करने वालों में 52% निजी क्षेत्र के लोग हैं और 48% सरकारी लोग। सरकार का इसमें कोई एकाधिकार नहीं है। बल्कि, स्वयं सरकार भी इससे बची नहीं है। साइबर सुरक्षा पर करोड़ों खर्च करने के बाद भी सरकार खुद भी इसका शिकार बनती रहती है। बल्कि, सरकार में भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जो उसकी सूचनाओं को विदेशियों तक पहुँचाते हैं। आज के दौर में निजता की बात सरकारी और व्यक्तिगत तौर पर बेमानी लगती है।
  • रशिया के हैकर्स ने हिलेरी क्लिंटन की ऐसी कुछ बातों को ऊजागर कर दिया, जो अमेरिकी जनता के अनुकूल नहीं थीं, और इस प्रकार डोलाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में मदद मिली। हैकर्स ने बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक से1 करोड़ डॉलर चोरी कर लिए। ‘गार्जियन ऑफ पीस‘ समूह के हैकर्स ने सोनी पिक्चर्स के कर्मियों और परिवारजनों के व्यक्तिगत ई-मेल हैक कर लिए। इस प्रकार के किस्से रोज ही हो रहे हैं। अपने व्यावसायिक लाभ के लिए कार्पोरेशन चोरी किए हुए डाटा खरीद लेते हैं। जबकि अपराधी इन डाटा के सहारे चोरी, अपहरण और हत्या जैसे अपराधों को अंजाम देते हैं।
  • साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व में लगभग 70% वेबसाइट हैकिंग के शिकार हैं। एक हैक का पता लगाने में लगभग 240 दिन का समय लग जाता है। प्रतिवर्ष 66% की दर से वायरस फैल रहे हैं। इनमें से कुछ तो डाटा पर नज़र रखते है, उन्हें रिकार्ड करते है और कुछ सिस्टम को नष्ट करने के लिए काम में लाए जाते हैं। ये कम्प्यूटर पर आपकी हर गतिविधि पर नज़र रखते हैं।साइबर स्पेस पूरे विश्व में नियमों की अवज्ञा करता है। इसमें कहीं भी कोई भी घुसकर आपके सिस्टम पर नज़र रख सकता है। लेकिन सभी हैकर्स अपराधी या व्यावसायिक लाभ लेने वाले नहीं होते। विकीलीक्स् जैसे कुछ हैकर्स कुछ भला करने के लिए जानकारी सामने लाते है।
  • इतिहास को उठाकर देखें, तो हर जगह शासन शक्तिशाली और व्यक्ति कमजोर नज़र आता है। परंतु आज के आतंकवादी समूहों ने हैकिंग से सरकारों और शासन की नींद उड़ा रखी है। वे उन पर भारी पड़ रहे हैं।
  • नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाले कार्यकर्त्ताओं की आवाज निजी क्षेत्र के हैकर्स के लिए क्यों नहीं निकलती ? ये तो हमारी निजता और सुरक्षा दोनों के लिए ही खतरा हैं, जबकि सरकार तो अपराधियों और हैकर्स दोनों से निपटकर हमारी सुरक्षा करती है। डाटा माइनिंग एक ऐसा सशक्त हथियार है, जिसके माध्यम से सरकार कर चोरों, आतंकवादियों, ब्लैकमेलर और ऐसे अवांछित लोगों को पकड़ लेती है, जो पुलिस की नजरों से छुपे रहते हैं।सरकार को स्वयं की एवं नागरिकों की सुरक्षा के लिए साइबर सुरक्षा बढ़ा देनी चाहिए। आधार डाटा की सुरक्षा तो इन सबके सामने एक छोटा सा मुद्दा है। भारत को एक निजता अधिनियम की आवश्यकता है। इससे सरकारी विभागों की सुरक्षा के साथ निजी ताकझांक करने वालों पर शिकंजा कसा जा सकेगा।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित स्वामीनाथन एस अंकलेश्वर अय्यर के लेख पर आधरित।