साइबर सुरक्षा से समझौता न हो

Afeias
11 Dec 2019
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Date:11-12-19

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हाल ही में साइबर सुरक्षा पर हमले की दो ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने भारत के साइबरस्पेस में भारत के एक शक्ति होने के दावों पर संदेह व्यक्त करने का मौका दे दिया है। इनमें एक घटना कुडनकुलम परमाणु शक्ति प्लांट के सिस्टम में सेंध लगाने की है। दूसरी घटना में आम चुनावों में इजरायल के एमएसओ द्वारा अपने पेगासस स्पाइवेयर से व्हाट्सएप उपभोक्ताओं की निजता को भंग किया था। ये दोनों ही घटनाएं भारत के महत्वपूर्ण सूचना के बुनियादी ढांचे की भेद्यता और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रति सरकार की घोर उपेक्षा को दर्शाती है।

साइबर हमले के ऐसे मामले दुनिया भर में हो रहे हैं। इन मामलों को लेकर तीन मुख्य बिन्दु सामने आते हैं –

 1. न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के दावे के विपरीत एअर-गैप सिस्टम भेद्य हैं। स्टक्सनेट ने एक एअर-गैप को भेदकर ईरान के परमाणु सेंट्रफ्यूज को अपंग कर दिया। इसने भारत की जटिल संरचना सुविधाओं पर भी हमला किया है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि सभी सिस्टम महत्वपूर्ण हैं, और एक क्लोस्ड नेटवर्क भी सुरक्षित नहीं है।

2. भारतीय सेना ने अपने परमाणु बलों के आधुनिकीकरण करने की घोषणा की है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तथा अन्य साइबर क्षमताओं को शामिल करने की बात है। परन्तु एक मजबूत साइबर सुरक्षा तंत्र का न होना चिंताजनक है। अगर यह अपने परमाणु संयंत्रों को जोड़ने वाली नेटवर्क की बाहरी परत को भी सुरक्षित नहीं कर सकता है, तो सरकार को अपने सुरक्षा प्रबंधन में उन्नत तकनीक को शामिल करके भी क्या मिलने वाला है?

3. आम चुनावों के दौरान व्हाट्सएप स्पाईवेयर के माध्यम से भारतीय नागरिकों की निजता को खत्म करके भारत सरकार को एक प्रकार की चुनौती दी गई है। हांलाकि सरकार ने भी व्हाट्सएप पर एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड संदेशों की ट्रेसबिलिटी को लागू कर रखा है। यह सरकार का ही खोला हुआ बैकडोर है, जो एक बार खुल जाने पर, अच्छे या बुरे, दोनों तरह के लोगों के काम आता है।

सच्चाई यह है कि भारत अपनी साइबर संप्रभुता की रक्षा करने में असमर्थ है। विडंबना यह है कि सरकार स्पाईवेयर के लिए अति संवेदनशील डिजिटल प्लेटफार्म में होने वाले साइबर अपराधों की जाँच करने और मुकदमा चलाने के लिए अपनी ही एजेंसियों को बांध कर रखती है।

अगर भारत आक्रामक और रक्षात्मक साइबर सुरक्षा का लाभ उठाने की योजना बनाता है, तो यह उसे एक साइबर संप्रभु शक्ति बनाएगा। दूसरे, यह राजनीतिक हितों की पूर्ति के साथ-साथ नागरिकों की सुरक्षा के प्रति भी गंभीर करेगा। ऐसा संभव नहीं है कि एक तरफ नागरिकों की जासूसी के लिए अग्रणी स्पाईवेयर का प्रयोग किया जाता रहे, और दूसरी ओर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा में सेंध लगने का रोना रोया जाए। देश के नागरिकों के हाथ में रहने वाले उपकरणों की निजता की सुरक्षा भी देश की परमाणु सम्पत्ति की रक्षा के लिए महत्व रखती है। अतः सरकार को दोहरी नीति से छुटकारा पाना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित त्रिशा राय के लेख पर आधारित। 7 नवम्बर, 2019

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