भारत का विकास मॉडल

Afeias
09 Oct 2018
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Date:09-10-18

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भारतीय अर्थव्यवस्था, विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसका विकास- मॉडल अन्य पूर्वी या पश्चिमी एशियाई देशों की अपेक्षा भिन्न है। उनका विकास-मॉडल फॉर्म से फैक्टरी का है, जो तेज गति से औद्योगीकरण, शहरीकरण एवं प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर आधारित है। भारत के लिए यह उपयुक्त नहीं लगता। विश्व में पहले ही रोबोटिक्स के चलते ऑटोमेशन और तेजी से बढ़ते आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के कारण विनिर्माण क्षमता में बहुत असंतुलन आ चुका है। इन स्थितियों में ज्यादा लोगों को रोजगार दे पाने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।

भारत में, शहरों की ओर बढ़ते प्रवास को संभालने की सीमित क्षमता है। अस्त-व्यस्त रूप में बढ़ते शहरीकरण ने हमारे परंपरागत सामाजिक ढांचे को ऊथल-पुथल कर दिया है। हमारे प्राकृतिक संसाधन सीमित और महंगे हैं।अपनी परिस्थितियों के मद्देनजर हम फार्म-फैक्टरी मॉडल की जगह फार्म टू फ्रंटियर मॉडल पर चल रहे हैं। यह विकास का ऐसा मॉडल है, जो वैश्विक उत्पादकता मंच पर नवाचार आधारित सेवाओं पर निर्भर करता है। इसके अंतर्गत आने वाले उद्योग, ऐसी तकनीक का प्रयोग करते हैं, जिससे उत्पादकता बढ़ाई जा सके। परन्तु ऐसा संभव होने के लिए कौशल का निरंतर विकास करना होता है। इसके परिणामस्वरूप आय में बढ़ोत्तरी होती है।

यह मॉडल विनिर्माण पर आधारित न होकर सेवा उद्योग पर आधारित है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सेवाओं का 57 प्रतिशत और विनिर्माण का 15 प्रतिशत योगदान है। चीन में यही क्रमशः 52 प्रतिशत और 29 प्रतिशत है। इस मॉडल पर चलते हुए सरकार, बड़े शहरों की जगह 3, 4 और 5 स्तर वाले शहरों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्हें विश्व स्तरीय सुविधाओं से लैस कर रही है। चीन की तुलना में भारत, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बड़ी मितव्ययिता से कर रहा है।

भारत के इस मॉडल को चुनने का कारण उसकी प्राथमिकता का अंतर है। हमने निर्यात आधारित आपूर्तिकर्ताओं को बढ़ावा देने वाली व्यवसायी मानसिकता को न अपनाकर, अपनी जनता को प्राथमिकता देते हुए घरेलू उपभोग को सर्वोपरि रखा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जनता के सामर्थ्य के अनुसार, कम कीमत वाली सेवाएं दी जा रही हैं। ‘सैशे’ जैसी छोटी पैकिंग का प्रचलन बढ़ा है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था, युवाओं को उच्च प्रतिस्पर्धा वाले उद्योगों में तकनीक से लैस पारिस्थितिकीय तंत्र विकसित करने को प्रेरित कर रही है।

इस प्रकार के उद्योग अप्रत्यक्ष रोजगार के निर्माण में बहुत आगे बढ़ते जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में दिया गया एक रोजगार, अप्रत्यक्ष रूप से तीन और लोगों को काम देता है। दूसरा उदाहरण, टैक्सी शेयरिंग कंपनी का लिया जा सकता है। इस उद्योग में कोई भी बेरोजगार युवा, प्रशिक्षण लेकर ड्रायवर बन सकता है। तीसरा, उड्डयन उद्योग है। इसमें युवाओं को रखरखाव, केबिन क्रू और सर्विस एजेंट के रूप में रोजगार दिया जा रहा है।

हमारी सरकार इस प्रकार के फ्रंटियर उद्योगों को बहुत बढ़ावा दे रही है। इनके लिए नियम और मानक भी तेजी से तैयार किए जा रहे हैं। कुछ ही समय में सरकार द्वारा ड्रोन के व्यावसायिक उपयोग पर नियमन जारी किए जाने की योजना इस दिशा में किए जा रहे सरकारी प्रयासों का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। साथ ही इन उद्योगों के अस्तित्व के लिए स्टेनफोर्ड टेक समूह और एमआइटी लाइफ साइंस की तरह नवोन्मेष समूह तैयार किए जाने की जरूरत है। इस विकास मॉडल के साथ अगले 20 वर्षों में हमारा सकल घरेलू उत्पाद 10 खरब डॉलर तक पहुँच सकता है। इस प्रकार हमारा देश मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था के स्तर पर पहुँच सकेगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित जयंत सिन्हा के लेख पर आधारित।