भविष्योन्मुखी कृषि-नीति
Date:20-03-19 To Download Click Here.
हाल ही में “किसान सम्मान निधि योजना” के अंतर्गतत कुछ किसानों को अपने बैंक खातों में 2,000 रुपये की राशि प्राप्त हुई है। सम्मान निधि की यह पहली किश्त है। इस योजना में कृषि जगत के संकट को दूर करने की अनेक संभावनाएं हैं। लेकिन इसके लिए कुछ सुधारों की आवश्यकता होगी।
- योजना की सफलता तभी है, जब किसानों की भूमि का सही रिकॉर्ड सरकार के पास हो। अधिकांश राज्यों के पास भूमि रिकॉर्ड का कोई केन्द्रीय दस्तावेज नहीं है। भूमि संबंधी रिकॉर्ड में किसी प्रकार के बदलाव के लिए किसानों को स्थानीय प्रशासन पर ही निर्भर रहना है। सम्मान निधि की पहली किश्त का काम 31 मार्च तक सम्पन्न करने के लिए सरकारी कर्मचारियों को मुस्तैदी से काम करना होगा।
- भारतीय कृषि के लिए साक्ष्य आधारित नीति को अपनाकर योजना को सफल किया जा सकता है। यह योजना ऑनलाइन पर काम करेगी, जिसमें राज्य सरकारें लाभार्थी किसानों की जानकारी देंगे। इसमें किसानों को अपनी पहचान के लिए आधार नंबर, बैंक खाते आदि की जानकारी देनी होगी। इस डाटा सपोर्ट के आधार पर सरकार सीमांत किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को रोकने का विकल्प रख सकती हे। वर्तमान में कालेधन का निवेश करने के लिए ग्रामीण भूमि को सबसे अच्छा माना जाता है। किसानों के डाटा के लीकेज की स्थिति में इसके दुरुपयोग की संभावना को रोकना एक जिम्मेदारी भरा काम है।
- बिजली, खाद आदि पर दी जाने वाली सब्सिडी को हटाकर किसानों को अपने विवेकानुसार एवं क्षमतानुसार फसल उगाने का अधिकार मिल सकेगा। बाजार के भाव पर बिजली मिलने पर वह कम जल उपलब्धता वाले राज्यों में धान नहीं उगाना चाहेगा। खाद का उपोग कम होगा। इसके अधिक उपयोग ने भूमि को बंजर बना दिया है। चरणबद्ध तरीके से सब्सिडी को हटाकर खेतों के स्वास्थ्य और पारिस्थितकीय में सुधार किया जा सकता है। सब्सिडी से बची राशि का उपयोग सालाना निधि के रूप में किसानों को ही दिया जा सकता है। इससे उन्हें अधिक सहायता मिल सकेगी।
- सम्मान निधि के साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य और गेहूं व चावल उगाने पर दी जाने वाली सब्सिडी को वापस लिए जाने के बाद किसान इन्हें उगाना नहीं चाहेगा। स्पष्ट है कि इन अनाजों का आयात करना पड़ेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसान को आजीविका मिली रहती है, और गरीब उपभोक्ताओं को खाद्य सुरक्षा। साथ ही देश भी खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर बना रहता है। लेकिन बदलते आर्थिक परिदृश्य में अधिकांश देश, अमीर देशों से सस्ते खाद्यान्न के आयात पर आश्रित होते जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार 2030 तक अधिकांश निर्धन देश खाद्यान्न के आयात के लिए अमीर देशों पर निर्भर हो जाएंगे। अमीर देशों के सस्ते खाद्यान्न के बाद देश के किसानों को और नुकसान होगा। इससे बचने के लिए भले ही सब्सिडी को खत्म कर दिया जाए, लेकिन एक सीमित न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखा जाना चाहिए।
इससे हमें कई तरह के लाभ होगे। हम खाद्यान्न आयात करने से बचे रहेंगे, किसानों की आय बढ़ेगी और सब्सिडी घटाने के लिए विश्व व्यापार संगठन में भारत पर जो दबाव पड़ रहा है, उससे भी बचा जा सकेगा।
- पीएम किसान योजना का लाभ भू-स्वामियों को ही मिलेगा। इसमें 50 प्रतिशत के लगभग जो खेतिहर मजदूर काम करते हैं, उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा। इनको लाभ पहुँचाए जाने पर भी विचार होना चाहिए।
- पीएम किसान योजना के साथ कृषि-निर्यात के संबंध में विदेशों से सीखकर कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं। डच फूलों की खेती, फ्रेंच वाइनयार्ड, जापानी खेती या इजरायल की जल संरक्षण तकनीक आदि प्रभावशाली हैं। नीदरलैण्ड विश्व का दूसरा बड़ा खाद्यान्न निर्यातक देश है, परन्तु वहाँ तकनीक के अत्यधिक निवेश से यह संभव हुआ है, जो अभी भारत के लिए मुश्किल है।
इसका सबसे अच्छा उपाय है कि हम 1 प्रतिशत कृषि-भूमि पर निजी निवेश के द्वार खोलें। भूमि को किसानों से लीज़ पर लिया जाए, और कांट्रैक्ट फार्मिंग वेन्चर बनाए जाएं। इससे बड़े पैमाने पर निर्यात किया जा सकेगा। ऐसे उद्यम भारत में सफलता से काम कर रहे हैं। इन्हें बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। इससे खेतिहर मजदूरों की भी आजीविका चलती रहेगी।
किसान सम्मान निधि में विस्तार, सीमित न्यूनतम समर्थन मूल्य और कांट्रैक्ट फार्मिंग से कृषि को संकट मुक्त बनाया जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अजय श्रीवास्तव के लेख पर आधारित। 1 फरवरी, 2019