देशभक्ति का आदर्श

Afeias
19 Mar 2019
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Date:19-03-19

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हाल ही में भारत ने पुलवामा हमले का जवाब देते हुए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के बालाकोट में जिहादियों के ठिकानों को नष्ट किया। इस हमले में भारत ने जैश-ए-मोहम्मद के ही ठिकानों को निशाना बनाया। पाकिस्तानी नागरिकों की सुरक्षा का ध्यान रखा। 1971 में बांग्लादेश युद्ध के दौरान “लंदन टाइम्स” ने भी भारतीय सेना की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि, ‘‘भारतीय सेना ने अपने अस्थायी कार्य को, युद्ध भूमि से भी बेहतर निभाया है।’’

हमारे सुरक्षा दलों और विदेश सचिव ने पाकिस्तानी नागरिकों का लक्ष्य न बनाने पर लगातार जोर दिया था। इसके बावजूद भारत के सोशल मीडिया और न्यूज चैनल लगातार पाकिस्तानियों को दुश्मन या अन्य इसी प्रकार की संज्ञा देते हुए पाकिस्तान पर जबर्दस्त कार्यवाही किए जाने को बढ़ावा दे रहे हैं। क्या इस प्रकार का उत्तेजित राष्ट्रवाद हमारे विश्व-प्रसिद्ध शांति योद्धाओं के लिए उपयुक्त है?

जो सही राष्ट्र भक्त हैं, वे जानते हैं कि किसी के प्रति घृणा को देश-प्रेम का आधार नहीं बनाया जा सकता। देश की एकता और अखंडता को जीवित रखने के लिए एक यथार्थवादी मिशन के प्रति समर्पित होने की जरूरत होती है। उदारवादी राष्ट्रवाद देश का निर्माण करता है, और उसे मजबूती देता है। मांसल शक्ति का प्रदर्शन करने वाला राष्ट्रवाद सामाजिक अस्थिरता को बढ़ाता है।

इस संकट की घड़ी में हुर्रियत नेताओं के साथ-साथ कश्मीर घाटी के अन्य राजनीतिज्ञों के सुरक्षा कवच को हटा लेने, और जमात व अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारियां कोई हर्ष का विषय नहीं है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 35-ए और 370 को खत्म करने की अपीलों के बीच महबूबा मुफ्ती का यह कहना कि ऐसा करने पर कश्मीरी तिरंगे का सम्मान करना छोड़ देंगे, कहीं-न-कहीं कुछ लोगों के दर्द को बयां करता है।

इन दरारों को भरने के लिए महबूबा जैसी नेताओं के बयानों को आरोप-प्रत्यारोप का आधार न बनाकर, समावेशी दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट करने पर कश्मीरी लोगों का बहिष्कार करना, एक मतंव्य के न पसंद आने, सिध्दू को टीवी शो के लिए प्रतिबंधित करना; कुछ ऐसे तरीके हैं, जिन्हें देशभक्ति के नाम पर आतंक फैलाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।

‘राष्ट्रवाद’ के नाम पर क्या महिला पत्रकारों के साथ अभद्रता करना और सामूहिक बलात्कार की धमकी देना उचित है? क्या आतंकवाद से निपटने के लिए कश्मीरियों का बहिष्कार किए जाने की मेघालय के राज्यपाल की अपील का खण्डन नहीं किया जाना चाहिए?

सच्चे देशभक्त अपने दम पर ही सुलह और एकता का प्रयास कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री की तरह के राजनेता कम ही हैं, जिन्होंने कश्मीरियों के प्रति प्रतिशोध को बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनाई है। कश्मीरियों के बचाव के लिए सिक्ख समुदाय मुस्तैद है। उच्चतम न्यायालय ने भी सभी राज्य सरकारों को कश्मीरियों की रक्षा के आदेश दिए हैं। उदारवादी राष्ट्रवादी कानून के शासन को मानता है। उत्तेजित राष्ट्रवादी उसकी विचारधारा से मेल न रखने वाले किसी पर भी हमला करके, आतंकवाद और सभ्यता के बीच की विभाजक रेखा को मिटाने का काम करता है।

सच्चे देशभक्त हमेशा ही सुलह के लिए संघर्ष करते हैं। बाजपेयी और मनमोहन सिंह, दोनों ने ही अलगाववादी नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। वे जानते थे कि कश्मीर घाटी में न्याय और समावेशी राज्य की स्थापना के साथ ही आतंकवादियों के लिए स्थानीय सहयोग कमजोर पड़ जाएगा। तत्कालीन मुख्यमंत्री सईद ने भी कश्मीरियों को एक तरह का उपचार दिया, और नतीजतन दो दशकों में एक भी नौजवान आत्मघाती बॉम्बर नहीं बना।

जब मानवाधिकार कार्यकर्ता जम्मू-कश्मीर में हुई मुठभेड़ों के बारे में पूछताछ करते हैं, तो वे राज्य प्रशासन की छवि को न्यायपूर्ण एवं जवाबदेह बनाने का ही प्रयत्न कर रहे होते हैं। उनका उद्देश्य उसे कमजोर करना नहीं होता।

सन् 2003 में बाजपेयी ने इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत की बात श्रीनगर में कही थी, और उन्होंने भारत के अन्य हिस्सों में दिए गए भाषणों में भी इसी नीति का ध्यान रखा। उन्होंने कभी यह भी नहीं कहा था कि भारत में बीजेपी की हार, पाकिस्तान के लिए जश्न मनाने का कारण बनेगी।

महात्मा गांधी के लिए भी देश प्रेम, किसी अन्य देश के लिए वैमनस्य रखना नहीं था। बल्कि वह उच्च आदर्शों का संवाहक था। गांधीजी एक निष्क्रिय शांतिदूत भी नहीं थे। उनका मानना था कि अगर युद्ध छेड़ना है, तो यह मूल्यों के आधार पर होना चाहिए। यही कारण है कि दो विश्व युद्धों में गांधीजी ने मित्र राष्ट्रों का समर्थन किया, जिसमें नागरिक अधिकार और स्वतंत्रता की गरिमा का उच्च आदर्श था। भारत भी अपनी सभ्यता के आदर्शों की रक्षा के लिए आतंकवाद के खिलाफ जंग कर रहा है। वह किसी समुदाय या धर्म को लक्ष्य नहीं बना रहा है।

उत्तेजित राष्ट्रवाद और देश प्रेम में यह फर्क है कि जहाँ उत्तेजित राष्ट्रवाद अपने देश को सही और गलत के न्याय में डाल देता है, वहीं देशभक्ति अपने देश को संवैधानिक प्रजातंत्र के उच्चतम मानकों तक उठते हुए देखना चाहती है। बाहरी आतंकों से बचाव का सबसे उत्तम उपाय तो यह है कि देश के नागरिक एक ऐसा गठबंधन बनाएं, जो बल के दम पर फैलायी गई वक्रपटुता से न उपजा हो, बल्कि शालीनता और समग्रता की भावना का परिणाम हो।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित सागारिका घोष के आलोख पर आधारित। 28 फरवरी, 2019

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