पोषण की दिशा में कदमताल

Afeias
14 Nov 2019
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Date:14-11-19

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विश्व स्तर पर भूख सूचकांक में भारत का स्तर काफी खराब है। यही कारण है कि सितम्बर माह को प्रधानमंत्री ने ‘राष्ट्रीय पोषण माह‘ घोषित किया था। प्रधानमंत्री ने बच्चों और महिलाओं के स्वस्थ भविष्य हेतु सरकार के पोषण अभियान को सहयोग देने की अपील की थी। उन्होंने “मन की बात” कार्यक्रम में बताया था कि पोषण के प्रति जागरूकता की कमी के कारण निर्धन और संपन्न परिवार, दोनों ही प्रभावित हैं।

कुछ तथ्य –

  • वैश्विक भूख सूचकांक के 119 देशों में भारत का स्थान 103वां है। इस आकलन के चार मुख्य मानक रखे गए है,

(1)  पांच वर्ष की उम्र से कम के बच्चों में अक्षमता

(2)  बौनेपन की समस्या

(3)  पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर, तथा

(4)  जनसंख्या में कुपोषित लोगों का अनुपात।

  • 2017 के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज के अध्ययन में कुपोषण को भारत में अक्षमता और मृत्यु का प्रधान कारण बताया गया है।
  • फूड एण्ड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफ ए ओ) कहता है कि भारत में लगभग 19 करोड़ 4 लाख लोग यानि 14.5% जनसंख्या कुपोषित है।
  • भारत का प्रमुख कार्यक्रम पोषण अभियान, वैज्ञानिक सिद्धांतों, राजनीतिक भाग्य और तकनीकी सरलता का समग्र रूप है। यह बच्चों, किशोरों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाल महिलाओं के लिए पोषण संबंधी परिणामों को बेहतर बनाने के लिए चलाया जा रहा है। इसके लक्ष्य ‘जीरो हंगर‘ को भी इसी माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
  • जीरो हंगर का लक्ष्य केवल भुखमरी को कम करके ही नहीं, बल्कि साथ में कुपोषण को दूर करके प्राप्त किया जा सकता है। इसी कारण प्रत्येक वर्ष 16 अक्टूबर को “विश्व खाद्य दिवस“ मनाया जाता है।

कारण – भारत सरकार की नीतियों से पिछले कुछ दशकों में खाद्यान्न उपयोग के स्वरूप में परिवर्तन आया है। इससे पोषक खाद्यान्न जैसे रागी, बाजरा, जौ तथा ज्वार आदि का उपयोग कम हो गया है।

स्वतंत्रता के बाद से अब तक खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई है। परंतु कुपोषण की स्थिति खराब ही हुई है। इसका कारण है कि कृषि क्षेत्र में चावल और गेंहू जैसे मूल खाद्यान्न के उत्पादन पर जोर दिया जाने लगा है। फलों, सब्जियों, एवं अन्य स्वदेशी अनाजों का उत्पादन गिर गया है।

कुछ प्रधान फसलों पर निर्भरता ने पारिस्थीकी तंत्र, पानी के संतुलन, खाद्य विविधता और स्वास्थ्य को बिगाड़ दिया है। खाद्यान्न की एकरसता से माइक्रोपोषक तत्वों की कमी होने लगी है।

कृषि में जैवविविधता –

  • फसलों में एकरसता से पोषण में कमी के साथ-साथ भूमि एवं जल की गुणवत्ता में कमी आती है। इनसे उत्पन्न उपज भी निम्नस्तरीय होती है।
  • शहरों में बसने वालों को खाद्यान्न चुनने की सुविधा है। अतः शहरी भोजन योजना में पोषक तत्वों की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को शामिल करना आवश्यक है।
  • कृषि जैव विविधता, भोजन के पोषक विकल्प चुनने की सहजता देती है।
  • छोटे कृषक, पशुपालक और बीज विक्रेताओं के पास इस जैव विविधता को बढ़ावा देने के अनेक साधन हैं।

कुछ प्रमुख प्रजातियों और आनुवांशिक विविधता के वैश्वििक स्तर पर विलुप्त होने से लोगों के भोजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। खाद्य और कृषि संगठन (एफ ए ओ), जैवविविधता संरक्षण, कृषि उत्पादन और स्थानीय फसलों के अनुकूल भोजन तैयार करने की दिशा में किए जा रहे सरकारी प्रयास के अंग हैं। उम्मीद की जा सकती है कि यह स्वस्थ धरती के निर्माण में सहायक होगी।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित टोमियो शिचीरी के लेख पर आधारित। 16 अक्टूबर, 2019

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