बिगड़ते पोषण अभियान को सुधारने का प्रयत्न

Afeias
13 Oct 2021
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Date:13-10-21

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हाल ही में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने पीएम पोषण योजना को मंजूरी दी है। यह 2025-26 तक प्रभावी रहेगी। यह मंजूरी ऐसे महत्वपूर्ण समय पर आई है, जब कोविड से प्रभावित परिवारों की वास्तविक आय में गिरावट आई है, और वे परिवार में पोषण के स्तर को बनाए रखने में अक्षम हैं।

कुछ तथ्य-

  • 2020 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के पहले चरण में 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के परिणाम चौंकाने वाले हैं। 13 राज्यों में बौनापन बढ़ा है। बच्चों और महिलाओं में एनीमिया बढ़ चुका है। 12 राज्यों में कमजोरी या ‘वेस्टिंग’ एक गंभीर समस्या है।
  • पिछले सर्वेक्षण अवधि में ढील से कुपोषण का संकट बिगड़ गया है। इससे लाखों बच्चों को वयस्क जीवन में कमजोरी का सामना करना पड़ सकता है।
  • एनीमिया प्रभावित जिलों में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में गर्म भोजन और पोषक तत्वों के साथ इस कमी को पूरा करने का लक्ष्य है। इस कार्यक्रम से 11.8 करोड़ बच्चे लाभान्वित होंगे।
  • इस योजना का प्रसार प्री-प्राइमरी के बच्चों तक किए जाने का लक्ष्य है। इस हेतु सोशल ऑडिट, स्कूलों में पोषक और ताजे उत्पादों की प्राप्ति हेतु बगीचा, निर्माण, किसानों-उत्पादकों संगठनों की भागीदारी और स्थानीय खाद्य परंपराओं पर जोर देने का प्रावधान है।
  • इस योजना के लिए आवंटित की गई निधि को लोचदार रखने का विचार किया गया है।
  • इस योजना के लिए आवंटित की गई 1,30,794 करोड़ रु. की राशि को कम माना जा रहा है, क्योंकि इसमें सम्मिलित व्यक्तिगत योजनाओं की संख्या ज्यादा है।
  • पोषाहार नियोजन के संबंध में अधिक विविधता वाले आहार को शामिल किया जाना चाहिए।

फिलहाल देश में खाद्य मुद्रास्फीति की आलोचना के स्वर गूंज रहे हैं। महामारी के चलते आय में गिरावट ने आवश्यक खपत को कम कर दिया है। महामारी के दौरान मध्यान्ह भोजन योजना के लिए खाद्यान्न  की कम खरीद और कई राज्यों के खाद्यान्न वितरण तंत्र में बिगड़ी स्थिति को सुधारने का सही समय है, क्योंकि भारतीयों की एक पीढ़ी का भविष्य दांव पर है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 1 अक्टूबर, 2021

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