पोषण के तीन महत्वपूर्ण आधार

Afeias
26 Dec 2019
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Date:26-12-19

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स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण पर जारी की गई व्यापक रिपोर्ट में दो बिन्दु प्रमुख हैं।

1. वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2019 के 117 देशों में भारत का स्थान 102वां है

2. पिछले कुछ प्रदर्शनों के अनुसार भारत में कुपोषण से संबंधित मिश्रित प्रदर्शन रहा है। बौनेपन में कमी देखने में आई है, परन्तु कमजोरी के मामलों में न के बराबर कमी आई है।

इस रिपोर्ट में पोषण से जुड़े कुछ नए और महत्वपूर्ण आधार लिए गए हैं।

1. माता की शिक्षा को एक आधार बनाकर देखा गया कि 12 वर्षों तक शिक्षा प्राप्त महिलाओं की संतानों में बौनेपन का स्तर 46% से घटकर 19% रह गया है। इस आधार पर बच्चों में कम वजन की समस्या में भी सुधार देखने को मिला।

2. खुले में शौच की प्रथा खत्म करने, स्वच्छता और स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध होने को दूसरा आधार माना जा सकता है। स्वच्छता से बच्चों में होने वाली बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इससे उनमें पोषण का स्तर बढ़ता है, जिसका प्रभाव उनमें घटते बौनेपर और निर्बलता के रूप में देखा जा सकता है।

3. आहार में विविधता से भी पोषण के स्तर में सुधार देखने को मिल सकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूँ और चावल जैसे मुख्य अनाजों के अलावा रागी, ज्वार तथा बाजरा जैसे प्रोटीनयुक्त अनाजों के उपयोग से इस पर काबू पाया जा सकता है।

इतना ही नहीं, सम्पन्न वर्ग के बच्चों में बढ़ते मोटापे की समस्या से निजात पाने के लिए भी अनाज के चयन में विविधता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

जहाँ तक बच्चों में कुपोषण के चलते निर्बलता की बात है, वहाँ यह देखने में आता है कि 22 महीनों में इसमें 4% की कमी आई है। यदि उत्तराखंड, अरूणाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और पंजाब राज्यों के 30 महीनों के प्रदर्शन पर ध्यान दें, तो यह 10% कम मिलती है। इन राज्यों में शायद बौनेपन की समस्या में अन्य राज्यों की अपेक्षा उतनी कमी नहीं आई है। अतः बौनेपन की तुलना में निर्बलता में कमी न आने के आंकड़े कहाँ तक सही हैं, यह कहना कठिन है। सरकार चाहे, तो इस हेतु किसी स्वतंत्र एजेंसी से सत्यापित करवाया जा सकता है।

हमारे लिए कुपोषण का कोई भी रूप सामाजिक-आर्थिक चुनौती बना हुआ है। इसे दूर करने के सभी संभव प्रयास किए जाने चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सनी जोस के लेख पर आधारित। 20 नवम्बर, 2019

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