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पूर्वोत्तर राज्यों की विकास स्थिति पर एक नजर

Afeias
29 Nov 2018
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Date:29-11-18

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पूर्वोत्तर राज्यों को ‘विशेष श्रेणी’ का दर्जा देकर ऐसे स्थान पर रखा गया है, जहाँ उनको ऐतिहासिक पिछड़ेपन, भौगोलिक सुदूरता, विरल जनसंख्या, दुर्गम इलाकों और रणनीतिक स्थितियों से जूझने के लिए केन्द्र की भरपूर सहायता दी जा सके। इन आठ राज्यों के अनेक क्षेत्रों में बसे अनुसूचित जनजाति के लोगों को आय कर अधिनियम में छूट का प्रावधान दिया गया है। साथ ही उन्हें उच्च शिक्षा के रास्ते सरकारी नौकरियों में पहुँचाने की कोशिश की जा रही है। सरकार के इन प्रयासों ने अनेक दीर्घकालीन परिवर्तनों का स्थान किया है। परन्तु ढेरों चुनौतियां अभी भी मुँह बाए खड़ी हैं।

  • 2011 की जनगणना के आधार पर बाकी के राष्ट्र की साक्षरता दर की तुलना में पूर्वोत्तर राज्यों की स्थिति बेहतर है।
  • लैंगिक अनुपात की स्थिति भी देश के बाकी के राज्यों से बेहतर है।
  • 2016 में शिशु मृत्यु दर, देश के बाकी हिस्सों से कम थी। मणिपुर में तो यह निम्नतम स्तर पर थी।
  • 2011-12 में गरीबी का अनुपात भी इन राज्यों में कम रहा। अरुणाचल और असम, इस मामले में अपवाद रहे।
  • दूसरी ओर, 2016-17 में पूर्वोत्तर राज्यों में प्राथमिक विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा रही। अरुणाचल प्रदेश में यह सर्वाधिक रही। पूरे देश में पूर्वोत्तर राज्यों के विद्यालयों की कक्षाओं का सबसे बुरा हाल है। 2017-18 की रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात, देश के बाकी राज्यों से कम रहा है।
  • स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सिक्किम, मिज़ोरम और त्रिपुरा के अलावा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में संस्थागत सेवाओं की बहुत कमी है। इस क्षेत्र में तंबाकू के अत्यधिक सेवन, साफ-सफाई की कमी और खानपान की गलत आदतों के कारण कैंसर बहुत होता है। इस क्षेत्र को देश का ‘कैसर केपिटल’ कहा जाने लगा है।
  • क्षेत्र में संपर्क-साधनों का विकास प्रगति पर है। राजमार्गों, पुलों, सड़कों, रेल एवं हवाई साधनों का लगातार विकास किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत गांवों को जोड़ा जा रहा है। यहाँ होने वाली मूसलाधार वर्षा और भू-स्खलन से सड़कों के रख-रखाव का काम बहुत खर्चीला हो जाता है।
  • रोजगार के क्षेत्र में राष्ट्रीय औसत की तुलना में पूर्वोत्तर राज्यों का स्थान ऊपर है। केवल असम में यह थोड़ा कम है। कामकाजी महिलाओं की संख्या यहाँ काफी ज्यादा है। यहाँ के लोग अभी भी सरकारी नौकरियों पर ही अधिक निर्भर रहते हैं। इसका कारण यहाँ के आदिवासी समाज में नातेदारी और जातीयता की भावना की गहरी पैठ होना है। यही कारण है कि शिक्षित युवा वर्ग भी नौकरी के लिए कहीं दूर नहीं जाना चाहता। इसके अलावा देश के अन्य भागों में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ होने वाले भेदभाव ने स्थितियों को और भी अधिक बिगाड़ दिया है।
  • क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करना एवं उद्यमिता का विकास करना सबसे बड़ी चुनौती है। इस क्षेत्र में व्यावसायिक बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात, देश में सबसे कम है। इसका कारण यहाँ भूमि संबंधी नियमों की जटिलता है। इसके कारण बैंक ऋण देने में हिचकते हैं। भूमि अधिग्रहण के नियमों का उदारीकरण करके इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।

संपूर्ण पूर्वोत्तर भारत में परिवर्तन की तेज हवा चल रही है। धीरे-धीरे यह देश के अन्य राज्यों की बराबरी में खड़ा दिखाई देगा। प्रतिस्पर्धा आधारित संसाधन आवंटन ढांचा बनाकर परिणाम में और अधिक सुधार की उम्मीद की जा सकती है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित आशीष कुंद्रा के लेख पर आधारित। 16 अक्टूबर, 2018