पहाड़ी राज्यों का विकास भार वहन-क्षमता के अनुसार होना चाहिए

Afeias
25 Oct 2023
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हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने जोशीमठ को लेकर औपचारिक पुष्टि की है कि शहर की वहन-क्षमता स्वीकार्य सीमा से बहुत आगे निकल चुकी है। यह भी कहा है कि यहाँ नए निर्माण नहीं होने चाहिए। असल मुद्दा यह है कि इस सच्चाई को उत्तराखंड सरकार ने लोगों के साथ साझा नहीं किया है।

इस पूरे प्रकरण में एक सबक छुपा हुआ है। वह यह कि पर्यटन के महत्व और सहायक बुनियादी ढाचें की आवश्यकता को देखते हुए, इस मुद्दे को विकास बनाम पर्यावरण तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, इसमें शामिल जोखिमों को देखते हुए इसे प्रत्येक हिमालयी राज्य की वहन-क्षमता पर एक प्रश्न के रूप में तैयार किया जाना चाहिए। ठीक यही बात केंद्र सरकार ने एक जनहित याचिका के जवाब में कही थी। उसने प्रस्ताव दिया था कि हिमालयी पहाड़ी राज्य वहन क्षमता का आकलन करें, और अपनी रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करें। पहाड़ी राज्यों की वहन-क्षमता का आकलन क्यों जरूरी है

  • लगभग 50 साल पहले, गढ़वाल में एक समिति ने भूमि धंसाव का अध्ययन किया, और कहा कि निर्माण गतिविधि को मिट्टी की भार वहन-क्षमता से जोड़ा जाना चाहिए।
  • बहुत से पहाड़ी क्षेत्र भूकंपीय गतिविधि के उच्च ज़ोन में आते हैं।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मानचित्र में भू-स्खलन संभावित क्षेत्रों को पहले ही चिन्हित किया गया है।

इन कारकों को ध्यान में रखते हुए बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के जोखिम मूल्यांकन पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। साथ ही सरकार को इस क्षेत्र के लोगों के साथ पारदर्शी होने की आवश्यता है। इसके साथ ही कुछ अन्य बेहतर समाधान ढूंढे जा सकते हैं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 26 सितंबर, 2023

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