नई इलैक्ट्रॅानिक नीति

Afeias
19 Aug 2020
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Date:19-08-20

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सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि इलैक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाने वाली 22 कंपनियों ने उत्पादन से जुडी प्रोत्साहन योजना के तहत आवेदन दिए हैं। इस अभियान से पांच साल की अवधि में 7 खरब रुपये तक के निर्यात की उम्मीद है। यदि भारत अपनी इलैक्ट्रानिक नीति को पूरी तरह से निर्यातोन्मुखी बनाता है , तो बहुत लाभ हो सकता है।

2015 में सरकार ने इलैक्ट्रॉनिक विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्य नीति के रूप में अप्रत्यक्ष करों , विशेष रूप से आयात-शुल्क का उपयोग किया था। इससे इलैक्ट्रॉनिक निर्यात में वृद्धि भी हुई। पिछले वित्त वर्ष में यह 11.22 अरब डॉलर पहुँच गया था। लेकिन इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात में वृद्धि जारी रही। केवल पिछले वर्ष यह 5% घट गया था। यह नीति औद्योगिकीकरण और नौकरियों को चलाने के लिए काम में लाई जाती थी। परंतु यह सीमित दृष्टिकोण रखती है।

निर्यात में हुई वृद्धि के बावजूद , ज्यादातर निर्माताओं को मुख्य रूप से घरेलू बाजार के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इससे वे अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। इसके बजाय , इसे पूरी तरह से निर्यात की दृष्टि से बनाया जाना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय पैमानों पर घरेलू विनिर्माण को कई बाजारों तक ले जाया जा सकता है।

भविष्य का विनिर्माण और रक्षा उद्योग इलैक्ट्रॉनिक्स पर ही निर्भर करता है। इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। सरकार की ओर से दिया जाने वाला प्रोत्साहन स्तर और मूल्य संवर्धन की दिशा में होना चाहिए।

ज्ञातव्य हो कि यह 2019 की राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक्स नीति है। इससे पहले 2012 में ऐसी नीति बनाई गई थी। वर्तमान नीति के तहत 2025 तक 400 अरब डॉलर का इलैक्ट्रॉनिक विनिर्माण पारिस्थतिकी तंत्र विकसित करने और एक करोड़ रोजगार के अवसरों के सृजन का लक्ष्य रखा गया है। इस नीति से देश में मोबाइल हैंडसेट विनिर्माण को एक अरब सेट तक करने का लक्ष्य है। विडंबना यह है कि इन मोबाइल हैंडसेट में केवल एसेंबली का काम यहां किया जाता है। जबकि वास्तविक तकनीकी मूल्य के काम विदेशों में किए जाते हैं। भारत को अपने देश में ही निर्यात योग्य विनिर्माण को स्तरीय बनाना होगा। इसके लिए नीति को ही निर्यातोन्मुखी बनाया जाना चाहिए।

विविध माध्यमों पर आधारित

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