जैसा अन्न, वैसा विकास

Afeias
04 Jun 2019
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Date:04-06-19

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सन् 1947 से लेकर अब तक भारत ने खाद्यान्न का उत्पादन 5 गुना बढ़ा लिया है, और अब वह इस क्षेत्र में निर्यातक भी बन गया है। इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर पसरी भूख का एक-चैथाई बोझ भारत के ऊपर है।

2011 तक भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवलपमेंट गोल के अंतर्गत 2015 तक गरीबी कम करने के अपने लक्ष्य को पा लिया था, परन्तु देश में भूख के ग्राफ को कम नहीं कर पाया। यूँ तो अल्पपोषण के स्तर में कमी आई है। यह घटकर 15% रह गया है। फिर भी यह विश्व में सर्वाधिक है। 2015 के धारणीय विकास लक्ष्य नं. 2 के अनुसार भारत को 2030 तक भूख को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए। इसके लिए उसे 20 करोड़ लोगों के पोषण के स्तर को ठीक करना होगा।

कुछ तथ्य

  • पिछले 50 वर्षों में भारतीय मुख्य खाद्यान्न के दामों में कमी देखने में आई है। लेकिन सब्जी, फल और दालों के दाम बहुत बढ़ गए हैं। इसके कारण गरीब जनता में माइक्रोन्यूट्रियेन्ट तत्वों की लगातार कमी होती जा रही है। इसे एक तरह की ‘छुपी हुई भूख’ माना जा सकता है, जो पेट भरने के बाद भी कुपोषण के कारण बनी रहती है। इसके कारण बच्चों में बौनापन और ऊर्जा की कमी हो जाती है। साथ ही स्त्रियों में रक्ताल्पता (एनीमिया) हो जाती है।
  • कुपोषण के कारण न केवल बच्चों, बल्कि बड़ों की सीखने की क्षमता, शैक्षणिक स्तर, उत्पादकता और ऊर्जा में कमी आ जाती है।
  • कुपोषित बच्चों में उच्च मृत्यु दर पाई जाती है। इसके साथ ही बाल्यकाल में कुपोषित रहे वयस्कों में गैरसंक्रामक रोगों की संभावना अधिक होती है।
  • खाद्यान्न में विविधता लाकर पोषण के स्तर में सुधार किया जा सकता है। इसके लिए दो प्रकार से पहल करनी होगी। (1) स्थानीय क्षेत्र में खाद्य पदार्थों की विविधता हो, और वे आसानी से उपलब्ध हो सकें। (2) खाद्य नीति को पोषण आधारित तैयार किया जाए, जिससे निर्धन वर्ग को विविध खाद्य पदार्थों के खर्च को वहन करने की सामथ्र्य मिल सके।

ज्ञातव्य हो कि अभी तक हमारी खाद्य नीति गेहूँ-चावल जैसे मुख्य कैलोरी बढ़ाने वाले अनाजों पर केन्द्रित है। किसान भी इनके उत्पादन का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। इसके कारण गौण उपज की आपूर्ति कम हो जाती है, और दाम भी बढ़ जाते हैं।

  • धारणीय विकास-2 के लक्ष्यों के चलते हमें अपनी विकास बाधाओं पर गौर करके उन्हें दूर करने का अवसर मिल पाया है। इन लक्ष्यों में भूख की दर को घटाने के लिए ग्रामीण गरीबी कम करने की बात भी की जा रही है। सरकार ने इन लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए 2020 तक किसानों की आय दुगुनी करके भूख और पोषण पर काबू पाने का ध्येय बना रखा है।
  • पोषण और खाद्य सुरक्षा के लिए छोटे स्तर की उत्पादकता की तीन तरह से महत्ता है।
  1. इससे एक परिवार की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है।
  2. इससे भोजन की कीमत कम हो जाती है। इसका सीधा संबंध बेहतर आपूर्ति और किफायत से है।
  3. कृषि में रत परिवारों की आय बढ़ जाती है, जिससे वे पोषक भोजन जुटा पाते हैं।
  • धारणीय विकास-2 के लक्ष्यों का प्राप्त करने के लिए हमें सार्वजनिक, निजी और जन सभाओं को एक मंच पर लाना होगा। इसके लिए कृषि, खाद्य, महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता एवं ग्रामीण विकास मंत्रालयों को एक साथ मिलकर प्रयास करने होंगे।
  • गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। एग्रीबिजनेस वैल्यू चेन का विकास करके कृषि कर्म के अतिरिक्त श्रमिकों को रोजगार दिया जा सकता है।
  • केन्द्र, राज्य और पंचायत, सभी को मिलकर इसके प्रति एकनिष्ठता दिखानी पड़ेगी।

मोटे अनाज और दालों की पैदावार को प्रोत्साहित करके इनकी उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।

  • पोषण और भूख से जुड़े विषयों पर पूर्व में आने वाली राजनीतिक और आर्थिक अड़चनों को दूर करना होगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित प्रभु पिंगली के लेख पर आधारित। 14 मई, 2019  

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