अन्न की बर्बादी को रोकें

Afeias
18 Jul 2017
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Date:18-07-17

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समस्त विश्व की कृषि इस समय जलवायु परिवर्तन, खाद्य पदार्थों के अस्थिर मूल्य, श्रमिकों एवं कृषि योग्य भूमि के अभाव की चुनौतियों से जूझ रही है। हम सबके सामने सबसे बड़ी समस्या भूमि, जल एवं श्रमिकों के घटते साधनों के साथ बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण की है। इन सबके बीच हमें कृषकों की आय बढ़ाने की भी चिन्ता करनी है।खाद्य एवं कृषि संस्थान (The Food & Agriculture Organization) ने अनुमान लगाया है कि खेत से लेकर हमारे शरीर तक पहुंचने में लगभग अन्न की एक तिहाई मात्रा बर्बाद हो जाती है। इससे न केवल जनता के पोषण में कमी आती है, बल्कि यह विश्व की ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन के लिए आठ प्रतिशत का दोषी भी है।

सच्चाई यह है कि विश्व में 2050 की अनुमानित जनसंख्या का पेट भरने लायक अन्न का उत्पादन हम आज भी कर रहे हैं। लेकिन अन्न की बर्बादी के कारण हमारी वर्तमान जनसंख्या का भी पेट नहीं भर पाता है। अन्न का अधिक उत्पादन करने से उसका संरक्षण करना अधिक सस्ता व्यापार है। फिलहाल विश्व में अन्न को सुरक्षित रखने के लिए मात्र चार प्रतिशत का निवेश किया जाता है।भारत जैसे विकासशील देशों में अन्न की दो-तिहाई बर्बादी फसल की कटाई से पहले ही या कटाई के बाद उसके वितरण तक हो जाती है। लगभग 15 अरब डालर की ऊपज तो यूं ही बर्बाद हो जाती है।

यू तो भारत अन्न के उत्पादन के मामले में विश्व में शिखर पर है। परन्तु यहाँ छोटे-छोटे खेतों की अधिक संख्या और बुनियादी ढांचों के अभाव में यह मात खा  जाता है। जब तक इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जाता, तब तक हम विश्व के खासे अन्न उत्पादक होते हुए भी कुपोषण की सूची में ऊपर ही नजर आएंगे।

  • कटाई के बाद फसल को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की संख्या को बढ़ाया जाना एक अच्छा उपाय हो सकता है। जहाँ अमेरिका में इस प्रकार से 70 प्रतिशत अन्न को बचा लिया जाता है, वहीं भारत में मात्र 4 प्रतिशत अन्न को रेफ्रीजरेशन से बचाया जाता है। हैरानी इस बात की है कि भारत में सबसे ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं। उत्तर प्रदश और बंगाल में सबसे ज्यादा हैं। लेकिन इनमें से 75 प्रतिशत को केवल आलू भंडारण के काम में लाया जाता है।
  • कोल्ड स्टोरेज के साथ-साथ ऊपज को अन्य स्थानों पर भेजने के लिए पर्याप्त पैकिंग हाउस, परिवहन एवं रेफ्रीजरेटेड परिवहन की आवश्यकता होती है। नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट के हाल ही के एक सर्वे के अनुसार भारत को 70,000 पैकिंग हाउस की जरूरत है, जबकि अभी मात्र 250 ही उपलब्ध हैं। इसी प्रकार 62,000 रेफ्रीजरेटेड वाहनों की जरूरत पर मात्र 10,000 वाहन उपलब्ध हैं।
  • फिलहाल खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने इस समस्या से निपटने के लिए ऐसी योजनाएं निकाली हैं, जो इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देंगी।
  • पूरे देश के कृषि बाजार को जोड़ा जाना चाहिए। वर्तमान सरकार ने इसके लिए ऐप भी बनाई है। किसानों को इस प्रकार के एकीकृत कार्यक्रम से जोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ शिक्षित किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर वे निजी क्षेत्र की कंपनियों, निर्यातकों, प्रसंस्करण उद्योगों एवं खुदरा विक्रेताओं से स्वयं ही जुड़ने में सक्षम हो जाएंगे।
  • भूमि-पट्टे को बढ़ावा देकर बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खेती से ऐसे निवेश को आकर्षित किया जा सकता है, जिससे अन्न की बर्बादी को कम किया जा सके। कृषि ऊपज वितरण की कड़ी की सफलता के लिए किसानों को संगठित करने की बहुत आवश्यकता है।
  • कृषकों को खेती की ऊपज बढ़ाने के लिए शिक्षित करने एवं सुझाव देने के लिए शोध एवं अनुसंधान को कृषि से और अधिक जोड़ने की आवश्यकता है।
  • भारत को कोल्ड स्टोरेज के लिए सौर ऊर्जा एवं नवकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों को अपनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
  • उपग्रहों से चित्र लेकर की जाने वाली प्रेसीशन खेती से फसल में लगने वाले कीड़ों के बारे में पहले ही जाना जा सकता है। ऐसा करने से फसल नष्ट होने से बचाई जा सकेगी।
  • शहरी उपभोक्ताओं को अन्न की बर्बादी के प्रति जागरूक बनाने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए।

अंततः बेकार हो चुके अन्न की रिसाइक्लिंग के द्वारा बायो खाद या पैकिंग सामग्री बनाई जा सकती है। इन सबके लिए भी विश्वस्तरीय तकनीकें हैं, जिन्हें पब्लिक प्राइवेट साझेदारी के द्वारा अमल में लाया जा सकता है।

इकॉनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित अस्तित्व सेन के लेख पर आधारित।

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