प्लास्टिक में घुटता दम

Afeias
09 Jul 2019
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Date:09-07-19

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मानवीय गतिविधियों से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले नुकसान के प्रमाण रोजमर्रा की जीवन में मिलते हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में प्रकृति को काफी बदल दिया गया है। 75% भूमि की सतह को अपने अनुसार मॉडीफाई किया गया है, 85% वेटलैण्ड नष्ट हो चुके हैं, और महासागर बढ़ते संचयी प्रभावों को झेल रहे हैं। पूरे विश्व में जैव-विविधता तेजी से नष्ट हो रही है। ऐसे प्राकृतिक संकट के समय में भी जी-20 की पर्यावरणीय बैठक में समुद्र प्लास्टिक कचरे से निजात पाने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं निकाले जा सके।

  • दुनिया भर में प्रचलित बोतल बंद पानी, प्लास्टिक कचरे में बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण है। इसके अलावा स्ट्रा, खाने के डब्बे, एक बार इस्तेमाल में लाई जाने वाली प्लेटें-चम्मच आदि इसे बढ़ा रहे हैं।

भारत में प्लास्टिक कचरे से कूड़े के ढेर बढ़ रहे हैं, नालियां जाम हो रही हैं और जलमार्ग प्रदूषित हो रहे हैं।

  • जहाँ देश के सम्पन्न लोग बोतलबंद पानी पर निर्भर होते जा रहे हैं, वहीं गरीब जनता बूंद-बूंद पानी को तरस रही है। ज्ञातव्य है कि एक लीटर बोतलबंद पानी के लिए 1.6 लीटर पानी लग जाता है। इसमें भरा जाने वाला अधिकांश जल संसाधित भू-जल होता है, जिससे जलवाही स्तर घट रहा है।
  • भारत में प्लास्टिक का वृहत् उत्पादन छः दशक पहले शुरू हुआ था। बोतल बंद पानी की शुरूआत पॉलीथईलीन टेराप्थालेट (पीईटी) से सिंगल यूज़ बोतलों के बनने के बाद हुई। इस पॉलिस्टर प्लास्टिक ने तमाम पेय पदार्थों की बोतलबंद बिक्री शुरू करवा दी। इस प्लास्टिक को बायोडिग्रेड होने में वर्षों लग जाते हैं, और जलाए जाने पर यह हानिकारक जहरीला धुँआ छोड़ता है।
  • पीईटी तो प्लास्टिक का मात्र एक प्रकार है, जो पर्यावरण को हानि पहुँचा रहा है। अनेक प्रकार के प्लास्टिक समुद्री जीवन को समाप्त कर रहे हैं। इसके साथ ही मानव खाद्य श्रृखंला खतरे में पड़ गई है। अनेक मछलियों के पेट में माइक्रो प्लास्टिक पाया जाने लगा है।
  • चीन और भारत अभी तक दुनिया भर के प्लास्टिक कूड़े का निपटान करने में अग्रणी रहे हैं। अब इन देशों ने ऐसा आयात स्वीकार करने से मना कर दिया है। भारत ने 2022 तक सिंगल-यूज प्लास्टिक वस्तुओं से मुक्ति का लक्ष्य रखा है।

भारत के जल और थल को प्रदूषित कर रहे प्लास्टिक से छुटकारा पाने के लिए कोई राष्ट्रीय नीति तैयार नहीं की गई है। न ही प्लास्टिक बोतलों के लिए रिसाइक्लिंग की कोई नीति है। कुछ राज्यों में आधे-अधूरे ढंग से प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगाई गई है।

  • भारत में पेय पदार्थों के लिए किसी पर्यावरणीय अनुकूल पदार्थ के इस्तेमाल के बजाय पीईटी के उपयोग की अनुमति है। इसके चलते इससे संबंधित कंपनियों को यहाँ उत्पादन करना सस्ता पड़ता है। यहाँ तो बोतलों की वापसी का भी कोई सिस्टम नहीं है, जिसके बदले कुछ पैसे वापस दिए जाएं।

भारत के लिए सीख

  • विश्व के रिसायक्लिंग चैंपियन जर्मनी से सीख लेते हुए भारत को सही नीतियों और नियमनों को अपनाना चाहिए। जर्मनी में लगभग सभी प्लास्टिक बोतलों को रिसाइकिल किया जाता है। बर्लिन में कुछ गरीब लोग कूड़े से प्लास्टिक बोतलों को जमा करके सुपरमार्केट में बेचकर पैसे कमाते हैं। भारत में कूड़ा बीनने वालों का भी इस प्रकार का आकर्षण देकर प्लास्टिक कूड़े का खात्मा किया जा सकता है।
  • भारत में कूड़ा-प्रबंधन का बहुत सा दारोमदार इन्हें एकत्रित करने वालों पर डाला जा सकता है। लेकिन इसके बदले इन्हें इतनी पर्याप्त राशि मिले कि वे इस कार्य को कौशल के साथ करने के लिए उत्साहित हो सकें।
  • प्लास्टिक पर पर्यावरण कर लगाकर धन इकठ्ठा किया जा सकता है। इसका उपयोग कूड़ा एकत्रित करने वालों को प्रोत्साहन राशि देने में किया जा सकता है। उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण करने वाली कंपनियों पर भी कूड़ा-प्रबंधन का भार डाला जाना चाहिए।

भारत में प्लास्टिक-कचरा वाकई गंभीर संकट बना हुआ है। यह भारत के पर्यावरण को कई तरह से दुष्प्रभावित कर रहा है। हमारे ताजा जल-स्रोत और खाद्य श्रृंखला नष्ट हो रही हैं। इसे स्थानीय तौर पर तत्काल दूर किया जाना चाहिए। अगर विश्व के स्तर पर भी इसका निराकरण नहीं किया गया, तो 2050 तक समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक का भार होगा।

द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ब्रह्मा चेलानी के लेख पर आधारित। 27 जून, 2019