प्लास्टिक की महामारी

Afeias
19 May 2021
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Date:19-05-21

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महामारी की दूसरी लहर में हम सांस लेने में भी डर रहे हैं, क्योंकि आशंका है कि वायरस वायु-जनित है। ‘लैन्सेट’ में प्रकाशित एक लेख में कहा भी गया है कि कोविड-19 वायरस वायु-जनित होने की आशंका है, और सतह पर जमे जलकणों के बजाय अब इसके संक्रमण का डर बढ़ गया है। इसका अर्थ यह है कि सामाजिक दूरी के बावजूद सांस के द्वारा हम इसका शिकार हो सकते हैं।

भयावह तथ्य यह है कि जिस हवा में हम सांस ले रहे हैं, वह 200 वर्षों से प्रदूषित है। इसका कारण कई प्रकार का गैस-उत्सर्जन है। पृथ्वी का वायुमंडल वैसे भी बहुत स्वच्छ नहीं रहा है। यह जंगल की आग, ज्वालामुखी विस्फोट, धूल के बवंडर, पराबैंगनी विकिरण और इस प्रकार के अन्य स्वाभाविक रूप से होने वाले प्रदूषण जैसी प्राकृतिक आपदाओं से आप्लावित रहा है। हालांकि इन सबमें औद्योगिक प्रदूषण सबसे खतरनाक कहा जा सकता है। यह प्रदूषण वायु, जल और थल में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में फैला हुआ है। एक अध्ययन में कहा गया है कि वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक का 84% अमेरिकी नगरों के बाहर की सड़कों से आता है। बाकी में से 11% समुद्रों में बहकर आता है।

एक अन्य अध्ययन में यह भी बताया गया है कि वायुजनित माइक्रोप्लास्टिक के कण, हवा में एक सप्ताह से ज्यादा तक रह सकते हैं। देशों और महाद्वीपों को पार करने के लिए इतना समय पर्याप्त होता है।

जब हमारी रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुओं में कांच, धातु और पोर्सलेन की जगह प्लास्टिक ने ली, तब किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह हमारे स्वास्थ को इतना प्रभावित करेगा। हमने समुद्री जीवों की तो कभी चिंता ही नहीं की थी।

अन्य सामग्री की तुलना में प्लास्टिक बहुत ही सस्ता साधन है। आसानी से उपलब्ध होता है। रख रखाव में आसान है। हल्का होता है और इसका भंडारण आसान है।

जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण का क्षय, विषैले उत्पाद, जल, वायु और थल प्रदूषण ने आज जीवन और आजीविका को खतरे में डाल दिया है। हमारे जीवन में प्लास्टिक इस प्रकार से घुस चुका है कि उसे अलग करना मुश्किल हो गया है।

एक समय पर बताया गया था कि 1100 टन माइक्रो प्लास्टिक के कण अमेरिका के पश्चिमी समुद्र पर तैर रहे थे। 5 मि.मी. से भी कम आकार के ये कण प्लास्टिक की बोतलों और थैलियों से आए थे। इसके अलावा सिंथेटिक कपड़ों की धुलाई से निकले माइक्रोफाइबर से भी आए थे। विघटनीकृत प्लास्टिक से भरा जल, मृदा और समुद्र को प्रदूषित करता है। ये कण हमारे जल-चक्र का अब हिस्सा बन चुके हैं। वाष्पीकरण के बाद ये कण वायुमंडल में अनंत समय के लिए मौजूद रहते हैं।

पॉलीमर के द्वारा भी हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इनके उद्भव का पता लगाना बहुत मुश्किल है। इन सबके समाधान के रूप में कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ, राजगोपालन ने प्लास्टिक कचरे को निर्माण कार्यों में लगाए जाने का सुझाव दिया है। फिर सवाल उठता है कि टायरों से निकलने वाले प्लास्टिक और सड़कों के प्लास्टिक के घर्षण से क्या अधिक माइक्रोप्लास्टिक उत्पन्न नहीं होगा ?

जब ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई, और अब कोविड 19 जैसी महामारी के रूप में हमारे तत्काल नियंत्रण से परे घटनाएं तेज हो जाती हैं, तो विशेषज्ञ हमें शमन के उपायों के प्रभावी होने तक अनुकूलन सीखने के लिए कहते हैं। सवाल यह है कि कोई मानव वायरस, कार्बन डाय ऑक्साइड और प्लास्टिक से विषाक्त वायु को कैसे स्वीकार करे ?

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित नारायणी गणेश के लेख पर आधारित। 22 अप्रैल, 2021

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