पुलिस की भूमिका बदली जाए
Date:14-09-18 To Download Click Here.
1960 में भारत और अमेरिका दोनों ही देश कानून-व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति से परेशान थे, और इससे निपटने का प्रयत्न कर रहे थे। दोनों ही देशों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए, और अलग-अलग परिणाम भी पाए।
भारत में पुलिस-व्यवस्था की शुरूआत अंग्रेजों ने की थी। जाहिर सी बात है कि अपने दमनकारी शासन की रक्षा के लिए उन्हें सैन्यवादी और कड़क पुलिस चाहिए थी, और उन्होंने वैसा ही किया।
पुलिस व्यवस्था के जनक कहे जाने वाले रॉबर्ट पील ने 1829 में लंदन मेट्रोपोलिटन पुलिस की स्थापना की। पुलिस की शुरूआत के साथ ही उनका विचार था कि यह ‘नागरिकों को यूनिफार्म’ पहना देने जैसी भूमिका निभाए। उन्होंने नवनिर्मित पुलिस-बल से लोगों के बीच घुल-मिलकर काम करने और अपराध से सुरक्षा को प्राथमिकता देने की अपील की। उनके इस सिद्धान्त ने लोगों को भी अपराध रोकने में भागीदार बना दिया। यह विचार बहत ही सफल रहा।
20वीं शताब्दी में ऑटोमोबाइल और दूरसंचार के विकास के साथ ही पुलिस की भूमिका अपराध से लड़ने वाले व्यावसायिकों की हो गई और यह पूरी व्यवस्था गश्त, सेवा में तत्पर रहने और अपराध की जाँच-पड़ताल में प्रतिक्रियाशीलता पर केन्द्रित हो गई। इन सबके बीच नागरिकों की भूमिका कम होती गई। वे अपराध को रोकने वाले के स्थान पर सहायता मांगने वाले बन गए। गश्त के लिए मोटर वाहन के बढ़े प्रयोग ने पुलिस को लोगों से दूर कर दिया।अब पुलिस किसी आपराधिक स्थल पर ही लोगों से रूबरू होने लगी। आम जनता का उसके प्रति और उसका आम जनता के प्रति भाव बदल गया।
जब 1960 में अमेरिका और भारत दोनों में ही कानून-व्यवस्था की स्थिति गड़बड़ाई, तब अमेरिका में पुलिस की व्यावसायिक अपराध नियंत्रक वाली भूमिका पर सवाल उठाए जाने लगे। वाहन से पुलिस की गश्त की व्यर्थता को देखते हुए धीरे-धीरे पैदल ही गश्त लगाने वाली प्रथा को बढ़ाया गया। 1994 में अमेरिका ने एक कानून बनाकर एक लाख गश्त लगाने वाले पुलिसकर्मियों की भर्ती की। वहाँ की जनता के लिए पुलिस अब अपराध की दशा में ही सक्रिय होने के स्थान पर एक ऐसे पड़ोसी का किरदार निभाने लगी, जो मुसीबत में सदा साथ खड़ा रहता है। इस प्रकार अमेरिका ने धीरे-धीरे हिंसक वारदातों पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर लिया।
भारत में, ब्रिटिश पुलिस मॉडल में सुधार के लिए 1970 में एक योजना बनाई गई थी। परन्तु इसमें पुलिस की भूमिका को बदलने के स्थान पर केवल उसके आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया गया। अमेरिका के सुधारों के विपरीत भारतीय पुलिस अब भी गश्त, सेवा में तत्पर और अपराध की जाँच-पड़ताल की प्रतिक्रियाशीलता पर टिकी रही। पुलिस की इस सुरक्षात्मक पहुँच के बजाय प्रतिक्रियावादी पहुँच ने अपराधों में वृद्धि की। इसके परिणामस्वरूप ही भारत में निजी सुरक्षा एजेंसियों और गेटेड सोसायटी की मांग बढ़ने लगी।
आज भारत में भी अमेरिका की तर्ज पर समुदाय-उन्मुख और अपराध से निपटने को तैयार पुलिस रणनीति की आवश्यकता है। इसे अपराध मानचित्रण एवं अपराध के प्रचलन के विश्लेषण पर आधारित किया जाना चाहिए। ऐसा करने पर ही व्यावसायिक अपराधियों एवं मानसिक विकृति में अपराधी बने लोगों से निपटा जा सकेगा। यही वह समय है, जब पुलिस बल में 86 प्रतिशत स्थान रखने वाले हवलदारों की भूमिका को समस्या के समाधानकर्ता की तरह परिवर्तित किया जाएगा। देश में 10-24 आयु वर्ग के लगभग 35 करोड़ युवा हैं। सक्रिय और परस्पर संबंद्ध, सामुदायिक समाधान की ओर उन्मुख पुलिस के लिए ये युवा एक सहयोगी की भूमिका निभा सकते हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ओ.पी.सिंह के लेख पर आधारित। 23 अगस्त, 2018