पुलिस के व्यवहार को कैसे बदला जाए ?

Afeias
25 Oct 2021
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Date:25-10-21

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पुलिस बल का गठन जनता की सुरक्षा और सहायता के लिए किया गया था। परंतु हाल ही के कुछ वर्षों में पुलिस के कृत्यों ने उसकी छवि को धूमिल कर दिया है। पुलिस की बर्बरता से संबंधित प्रसंग न केवल भारत में, बल्कि विश्व के अनेक देशों में भी देखने में आते हैं। इनका विश्लेषण करने पर कुछ बिंदुओं के रूप में इसका निम्न सार निकलकर आता है –

  1. दुनिया के अनेक हिस्सों में पुलिस संगठनों पर सभ्य और वैध व्यवहार के लिए भरोसा नहीं किया जाता है। अपराध-संदिग्धों के खिलाफ गुप्त पुलिस कार्रवाई की अनुमति न देने हेतु स्थापित किए गए नियंत्रणों के बावजूद ऐसा होता जा रहा है।
  1. पुलिस की इस अनियंत्रित स्थिति के लिए कुछ बेईमान और अति उत्साही पुलिसकर्मी जिम्मेदार होते हैं।
  1. कभी-कभी इसका कारण राजनीतिक हस्तक्षेप भी होता है। कुछ दल या व्यक्ति अपने विरोधियों के साथ कुछ षड्यंत्र को अंजाम देने में अपने अधिकार का दुरूपयोग करते हुए पुलिस का सहारा लेते हैं।
  1. न्यायपालिका ने आपराधिक न्याय प्रणाली में इस विकृति को ठीक करने की कोशिश की है। लेकिन सफलता बहुत मामूली रही है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने हाल ही में पुलिस के आचरण पर अपनी शंकाओं को व्यक्त किया है।

  1. पुलिस के इन कुकृत्यों का निवारण दंड से नहीं हो सकता। नैतिकता की एक नई संस्कृति ही परिदृश्य को बदल सकती है।
  1. केवल पुलिस तकनीक को उन्नत करने (गश्त करने वाले पुलिसकर्मियों पर बॉडी कैमरे की अनिवार्यता और पुलिस थाने की कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग) से बात नहीं बन सकती । इस हेतु मानसिकता में पर्याप्त बदलाव लाना होगा।

इस तरह के बदलाव लाने में दशकों लग सकते हैं। इन प्रयासों के लिए प्रबुद्ध पुलिस के साथ-साथ राजनीतिक नेतृत्व की भी आवश्यकता होगी ।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित आर के. राघवन के लेख पर आधारित। 6 अक्टूबर 2021

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