धारणीयता के नए मूल्यों की मांग
Date:23-09-19 To Download Click Here.
ब्राजील के अमेजन वनों में लगी भयंकर ज्वालाग्नि, जो जानबूझकर लगाई गई है, वैश्विक प्रयास के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रही है। विश्व में जगह-जगह पर इस प्रकार की नीतियों के विरोध में धरने और प्रदर्शन किए जा रहे हैं। लेकिन लगभग सभी बड़े देशों के नेता ऐसी नीतियों की तरफ झुकते दिखाई दे रहे हैं। ब्राजीलियन राष्ट्रपति जैर बोहसोनारो ने भी इसे आंतरिक मामला बताते हुए पर्दा ढंक दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने पेरिस समझौते से हाथ खींच लिया है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने दोनों ही पक्षों को अपना समर्थन दिया है।
विश्व के सबसे विस्तृत वन-प्रांत का जलना और विश्व के बड़े प्रदूषक देशों का एकजुट होकर इसका समर्थन करते हुए एक लॉबी बना लेना दुर्भाग्यजनक है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इसके परिणाम इन देशों तक ही सीमित न होकर विश्वव्यापी हैं।
द इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लइमेट चेंज ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन और उससे प्रभावित रेगिस्तान में बदलती भूमि क्षरण, धारणीय भूमि-प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और ग्रीनहाउस गैस आदि पर रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि उचित भू-प्रबंधन के बगैर मानवीय सभ्यता के अस्तित्व की रक्षा संकट में पड़ सकती है।
भूमि प्रबंधन
भूमि तो लोगों की जिन्दगी का अहम् हिस्सा है। यह भोजन, जल, आजीविका, जैव-विविधता तथा अन्य अनेक स्तर की सुविधाएं उपलब्ध कराती है। धरती पर जीवन के अनेक पक्ष भूमि से ही अंतर्संबंधित हैं। दशकों से चले आ रहे खराब भू-प्रबंधन का दुष्प्रभाव हम देख ही रहे हैं। रसायनों के भारी इस्तेमाल, जैविक कीटों की कमी और मोनोकल्चर के कारण भूमि की क्षमता का हृास हो रहा है। भू-जल स्तर की कमी और उसके प्रदूषण से तो हम सभी परिचित हैं।
इसे संभालने के लिए रसायनों के इस्तेमाल में कटौती और कृषि पारिस्थितीकी के अनुसार खाद्य उतपादन के प्राकृतिक तरीकों को अपनाने से बढ़ते तापमान को रोका जा सकता है।
चारागाहों को खेतों में बदले जाने से रोकना होगा। कृषि में पानी का संतुलित उपयोग करना होगा। फसल विविधीकरण, कृषि-वानिकी और स्थानीय बीजों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। इससे भूमि में कार्बन और लवण की मात्रा भी कम होती है।
खाद्यान्न की बर्बादी को कम करना बड़ा कदम होगा। मांसाहार में कटौती करके स्थानीय उपज का अधिकाधिक उपभोग किया जाना चाहिए।
वनों की कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए। पीटलैण्ड और वैटलैण्डस की सुरक्षा की जानी चाहिए।
वर्तमान की मांग
जलवायु परिवर्तन और भूमि-प्रबंधन की दिशा में देशों की राष्ट्रवादी और अलगाववादी नीतियां काम नहीं आ सकतीं। पृथ्वी की धारणीयता के लिए हमें नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता पर रखना होगा। ये ऐसे हों, जो पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता की प्रगति पर आधारित हों, बहुलवाद का समर्थन करें, जीवन की गुणवत्ता को सुधारें, उपभोक्तावाद के आधार को खत्म करें तथा ऐसी पहचान बनाएं, जो संसार की प्रचलित पारंपरिक सीमाओं को तोड़ने में समर्थ हों।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सुजाता बिरावन के लेख पर आधारित। 2 सितंबर, 2019