भू-राजनैतिक परिदृश्य में लोकतांत्रिक मूल्यों का बढ़ता प्रभाव

Afeias
01 Jul 2020
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Date:01-07-20

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कोविड-19 के साथ समकालीन वैश्विक परिदृश्य इतनी तेजी से बदल रहे हैं , जो ऐसे नए समीकरण बना रहे हैं , जिनकी कुछ समय पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस वैश्विक बदलाव में लोकतांत्रिक मूल्य अभिन्न हिस्सा बन रहे हैं। इसी श्रृंखला में विश्व के आठ लोकतंत्रों ने वरिष्ठ कानून निर्माताओं के अंतर-संसदीय गठबंधन की स्थापना की है। इन देशों का मानना है कि चीन के आर्थिक उदय ने वैश्विक नियमों पर आधारित व्यवस्था को भारी दबाव में डाल दिया है, और चीन के विरुद्ध अकेले खड़े होना किसी के बस की बात नहीं है। अत: यह समूह लोकतांत्रिक देशों से ‘साझा मूल्यों  की रक्षा के लिए एकजुट होने’ का आव्हान कर रहा है।

महामारी से जुड़े चीन के गैर जिम्मेदाराना रवैये ने , अनेक देशों को चीन के आर्थिक जाल में फंसने के प्रति सजग कर दिया है। इसी तर्ज पर अमेरिका , भारत , आस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को जी-7 में शामिल करके उसका विस्तार करना चाहता है। वास्तव में वह अपनी आवश्यक तकनीकी जरूरतों को इन देशों के माध्यम से पूरा करके चीन पर निर्भरता को कम या खत्म करना चाहता है।

इस कदम का उद्देश्य चीन को एक स्पष्ट संदेश देना है कि उसकी मनमानी नहीं चल सकती। इन सबसे बौखलाया हुआ चीन, गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर आक्रमण करके भारत पर दबाव बनाना चाहता है कि वह यू.के. और अमेरिका की योजना में शामिल न हो।

2007-08 में पनपी आर्थिक मंदी के बाद से ही भारत बहुराष्ट्रीय या बहुपक्षीय व्यवस्था लाने का प्रयत्न कर रहा है। इसके चलते जी-20 संगठन बनाया गया था। परन्तु अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों ने इसे तवज्जो नहीं दी। ट्रंप ने तो कार्यभार संभालते ही ‘अमेरिका फॉर अमेरिकन्स’ का  नारा देकर इस विचार की धज्जियां उड़ा दी थीं। आज चीन का बोलबाला होना , इसी का परिणाम है कि वह वैश्विक व्यवस्था का सरताज बना हुआ है।

प्रमुख देशों की अपेक्षा के अनुकूल चीन ने उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार न करते हुए महामारी का प्रसार किया। उसकी इस नीति ने विश्व  की प्रमुख शक्तियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन और जी-20 जैसे समूहों से अलग , नए मंच और संस्थानों की स्थापना के लिए बाध्य कर दिया है। इसी के चलते लोकतांत्रिक मूल्यों को केन्द्र में रखकर चलने की पुकार लगाई जा रही है।

भारत तो सदा ही इस नीति का अनुसरण करता रहा है। पिछले कुछ वर्षों में उसने अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देने के साथ-साथ , हिन्दि-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिमी देशों से भी लगभग वैसी ही आत्मीयता बनाए रखने का प्रयत्न  किया है। भारत को आगे भी लोकतांत्रिक क्रियाशीलता को बनाए रखना होगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित हर्ष वी पंत के लेख पर आधारित। 16 जून, 2020

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